पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३०७

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दखा शैला । वह आरम्भ हा चुकी है, अब उस रोकन में असमर्थ हूँ। तब भी तुम कहती हो, ता मैं ही कहकर देखूगा कि क्या होता है । अच्छा तो जाआ, तुम्हारे हितोपदेश क पाठ का यही समय है न ! वाह | क्या अच्छा तुमन यह स्वॉग बनाया है। शैला ने स्निग्ध दृष्टि से इन्द्रदेव को दखकर कहा-यह स्वांग नही, है, मैं तुम्हार समीप आने का प्रयल कर रही हूँ-तुम्हारी सस्कृति का अध्ययन करक। अनवरी को आते देखकर उल्लास से इन्द्रदेव ने कहा-शैला । शेरकोट वाली बात अनवरी स ही मां तक पहुंचाई जा सकती है। ___ शैला प्रतिवाद करना ही चाहती थी कि अनवरी सामने आकर खडी हो गई । उसने कहा--आज कई दिन से आप उधर नहीं आई है। सरकार पूछ रही थी कि अरे पहले बैठ तो जाइए। कुर्सी खिसकाते हुए शैला ने कहा मैं तो स्वय अभी चलन क लिए तैयार हा रही थी। जन्छा हा शेरकोट के बार म रानी साहबा स मुझ कुछ कहना था। मरे भ्रम स एक बडी बुरी बात हो रही है उसे रोकने के लिए क्या? मधुबन वेचारा अपनी झापडी स भी निकाल दिया जायगा। उसके बापदादो की डीह है । मने बिना समझे-चूझे बैंक के लिए वही जगह पसन्द की । उस भूल को सुधारन के लिए मैं अभी ही मान वाली थी। मधुबन । हाँ, वही न, जो उस दिन रात को आपके साथ था, जब आप नील-कोठी से आ रही थी ? उस पर तो आपको दया करनी ही चाहिए-कहकर अनवरी ने भेद भरी दृष्टि से इन्द्रदेव की आर देखा । इन्द्रदेव कुर्सी छाड उठ खड़े हुए। शैला ने निराश दृष्टि से उनकी ओर देखते हुए कहा-तो इस मरी दया म आपकी सहायता की भी आवश्यकता हो सकती है । चलिए । तितली २७६