पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३४५

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भला, आज कितने दिनो पर । तुम अप्रसन हो इसक लिए न। मैं क्या करूँ । –कहते-कहन शैला का चेहरा तमतमा गया । वह चुप हो गई। कुछ कहो शैला । तुम क्यो आने म सकोच वरती हो? मैं कहता है कि तुम मुझे अपन शासन म रखो। किसी से डरने की आवश्यक्ता नही । शैला न दीर्घ नि श्वास लकर कहा~मैं तो शासन कर रही हूं। और भी अधिक तुम्हारे ऊपर अत्याचार करते हुए मैं कांप उठती हूँ। इन्द्र । तुम वैस दुबल हुए जा रहे हा ? तुम नहीं जानते कि मैं तुम्हारे अधिक क्षोभ का कारण नहीं बनना चाहती। कोठी म अधिक जाने से अच्छा तो नही होता । ___ क्या अच्छा नहीं होता। कोन है जो तुमका रोकता। शैला ' तुम स्वय नही आना चाहती हो । और मैं भी तुम्हारे पास आता हूँ तो गाँव-भर का राना मरे सामने इकट्ठा करके धर देती हो। और मरी कोई बात ही नही । तुम काठी पर ठहरो, सुन लो, मै अभी कोठी पर गई थी। वहाँ कोई वाबू आये है । तुम्हारे कमरे म वैठे थ । मिस अनवरी बात कर रही थी। मैं भीतर चली गई । पहले तो वह घबराकर उठ खड़े हुए । मेरा आदर किया। किन्तु अनवरी न जब मेरा परिचय दिया, तो उन्होने विल्कुल अशिष्टता का रूप धारण कर लिया । वही बीचो-रानी के पति हैं ? शैला आगे कहते-कहते रुक गई क्योकि इन्द्रदेव के स्वभाव स परिचित थी। इन्द्रदेव ने पूछा-क्या कहा, कहो भी ? बहुत-सी भद्दी बाते । उन्हे मुनकर तुम क्या करोगे? मिस अनवरी तो कहने लगी कि उन्हे ऐसी हँसी करने का अधिकार है। मैं चुप हो रही । मुझे बहुत बुरा लगा । उठकर इधर चली आई। इद्रदेव ने भयानक विषधर की तरह श्वास फककर कहा-शैला । जिस विचार से हम लोग देहात म चले आय थे, वह सफल न हो सका। मुझे अव यहाँ रहना पसन्द नही। छोडो इस जजाल को, चला हम लोग किसी शहर में चलकर अपने परिचित जीवन-पथ पर मुख ले । यह अभागा शेला न इन्द्रदेव का मुंह बन्द करते हुए कहा-मुझे यही रहने दो। कहती हूँ न, क्रोध से काम न चलेगा । और तुम भी क्या घर का छोड कर दूसरी जगह मुखी हो सकोगे ? आह । मेरी कितनी करुण कल्पना उस नील की कोठी मे नगी-लिपटी है ! इन्द्र | तुमसे एक बार तो कह चुकी हूँ। तितली, ३१७