पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३४६

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वह उदास होकर चुप हो गयी। उसे अपनी माता की स्मृति ने विचलित कर दिया। इन्द्रदव को उसकी यह दुर्वलता मालूम थी। वह जानते थे कि शैला के चिर दुखी जीवन म यही एक सान्त्वना थी। उन्होंने कहा-तो मैं अब यहां से चलन के लिए न रहूंगा । जिसमे तुम प्रसन्न रहो। तुम कितने दयालु हो इन्द्रदेव | मैं तुम्हारी ऋणी हूँ। ___ तुम यह कहकर मुझे चोट पहुंचाती हो शैला । मैं कहता है कि इसकी एक ही दवा है। क्या तुम रोक रही हा । हम दोना एक-दूसरे की कमी पूरी कर लग । शैला स्वीकार कर ला ।कहत-कहत इन्द्रदव ने उस आर्द्रहृदया युवती के दाना कोमल हाथा को अपने हाया म दवा लिया। शैला भी अपनी कोमल अनुभूतिया का आवेश म थी। गद्गद कठस बाली–इन्द्र । मुझे अस्वीकार कब था? मैं तो केवल समय चाहती हूँ। देखा, अभी आज ही वाट्सन का यह पत्र जाया है, जिसम मुझे उनके हृदय के स्नेह का आभास मिला है। किन्तु मैं इन्द्रदेव न हाथ छोड दिया । वाट्सन | -उन मन म द्वेषपूर्ण सन्दह जल उठा। तभी तो शैला | तुम मुझको भुलावा देती आ रही हो । ऐसा न कहो । तुम तो पूरी बात भी नही सुनते । इन्द्रदेव के हृदय में उस निस्तब्ध सन्ध्या क एकान्त में सरसो के पूलो स निकली शीतल सुगन्ध की कितनी मादकता भर रही थी, एक क्षण म विलीन हो गई । उन्हे सामने अन्धकार की मोटी-सी दीवार खडी दिखाई पड़ी। इन्द्रदेव ने कहा- मै स्वार्थी नही हूँ शैला 1 तुम जिमम सुखी रह सका। वह कोठी की ओर चलन के लिए घूम पडे । शैला चुपचाप वही खड़ी रही। इन्द्रदेव ने पूछा-चलोगी न ? 1 हां, चलती हूँ-कहकर वह भी अनुसरण करन लगी। ) इन्द्रदेव के मन म साहस न होता था कि वह शैला के ऊपर अपन प्रेम का पूरा दवाव डाल सके। उन्हे सन्दह होने लगता था कि कही शैला यह न समझे कि इन्द्रदेव अपन उपकारा का बदला चाहते है । इन्द्रदेव एक जगह रुक गये और बाले-शैला, मे अपने बहनोई साहब के किये हुए अशिष्ट व्यवहार के लिए तुमसे क्षमा चाहता हूँ। शैला ने कहा--तो यह मेरे डायरी पढने की क्षमा याचना का जवाब है ३१८. प्रसाद वाङ्मय