पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३६०

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डग वढाती हुई चल पडी। छावनी पर पहुँचकर उसन देखा, बिलकुल सनाटा छाया है । नौकर-चाकर उधर चुपचाप काम कर रहे है। शैला माधुरी के कमरे के पास पहुँचकर वाहर रुक गई। फिर उसने चिक हटा दिया । देखा ता मेज पर सिर रखे हुए माधुरी कुर्सी पर बैठी है-जैस उसके शरीर म प्राण नही । शैला कुछ दर खडी रही । फिर उसने पुकारा–बीबी-रानी । माधुरी सिसकने लगी। उसने सिर न उठाया। शैला ने उसके वालो को धीर-धीरे सहलाते हुए कहा-क्या है, वीबी-रानी। माधुरी ने धीरे से सिर उठाया। उसकी आँखे गुडहल के फूल की तरह लाल हा रही थी। शैला स आख मिलाते ही उसके हृदय का वाध टूट गया। आसू की धारा बहने लगी। शैला की ममता उमड आई । वह भी पास बैठ गई। जी कडा करके माधुरी ने कहा-मैं ता सव तरह से लुट गई। हुआ क्या? मैं तो इधर बहुत दिनो से यहा आई नही, मुझे क्या पता। बीवी-रानी 1 मुझ पर सन्दह न करो। मैं तुम्हारा बुरा नही चाहती। मुझसे अपनी बीती साफ-साफ कहो न । मैं भी तुम्हारी भलाई चाहन वाली हूँ बहन । माधुरी का मन' कोमल हो चला । दुख की सहानुभूति हृदय के समीप पहुँचती है । मानवता का यही तो प्रधान उपकरण है । माधुरी ने स्थिर दृष्टि स शैला को देखत हुए कहा---यह सच है मिस शैला, कि मैं तुम्हारे ऊपर अविश्वास करती रही हूँ | मेरी भूल रही होगी । पर मुझे जो धोखा दिया गया वह अव प्रत्यक्ष हा गया । मैं यह जानती हूँ कि मरे पति सदाचारी नहीं है, उनका मुझ पर स्नेह भी नही, तब भी यह मरे मान का प्रश्न था और उससे भी मुझे धक्का मिला । मेरा हृदय टूक-टूक हो रहा है । मैंने कृष्णमोहन को लेकर दिन वितान का निश्चय कर लिया था। में तो यह भी नही चाहती थी कि वह यहां आवे । पर जो होनी थी वह होकर ही रही। माधुरी का फिर रुलाई आने लगी। वह अपन का सम्हाल रही थी। शैला ने पूछा तो क्या हुआ, बाबू श्यामलाल चले गये ? } हाँ, गये, और अनवरी को लेकर गये । मिस शैला । यह अपमान मैं सह 'न सकूँगी। अनवरी ने मुझ पर ऐसा जादू चलाया कि मैं उसका असली रूप इसके पहले समझ ही न सकी । यह कैसे हुआ । इसम सब इन्द्रदव को भूल है। वह यहाँ रहत तो ऐसी घटना न हाने पाती ।-शैला न आश्चर्य छिपाते हुए कहा । उनके रहने न रहने से क्या होता । यह तो होना ही था । हां, चले जान स ३३२ . प्रसाद वाङ्मय