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मेरे-मां के मन मे भी यह बात आई कि इन्द्रदेव को उन लोगो का आना अच्छा न लगा । परन्तु इन्द्रदेव को इतना रूखा मैं नहीं समझती। कोई दूसरी ही वात है, जिससे इन्द्रदेव को यहां से जाना पड़ा। जो स्त्री इतनी निर्लज्ज हो सकती है, इतनी चतुर है, वह क्या नही कर सकती ? उसो का कोई चरित्र देखकर चले गये होंगे । मुनिये, वह घटना मैं मुनाती हूँ जो मेरे सामने हुई थी___उस दिन माँ के बहुत बकन पर मैं रात को उन्हे व्यालू कराने के लिए थाली हाथ में लिय, कमरे के पास पहुंची । मुझे ऐसा मालूम हुआ कि भीतर कोई और भी है । मैं रुकी । इतन म मुनायी पडा–बस, बस, बस, एक ग्लास मैं पी चुकी, और लूंगी तो छिपा न सकूँगी । सारा भडाफोड हा जायगा। ____ उन्होंने कहा मैं भडाफोड होने से नहीं डरता । अनवरी | मैंने अपने जीवन मे तुम्ही को तो एसा पाया है, जिससे मरे मन की सब वाते मिलती है । मैं किसी की परवा नहीं करता, मैं किसी का दिया हुआ नही खाता, जो डरता रहूँ। तुम यहाँ क्यो पडी हो, चला कलकत्ते म ? तुम्हारी डाक्टरी ऐसी चमकेगी कि तुम्हारे नाम का उका पिट जायगा । हम लोगो का जीवन बडे सुख से कटेगा। लम्बी-चौडी बाते करने वाले मैंन भी बहुत-से देखे हैं । निबाहना सहज नही है वावू साहब | अभी बीवी-रानी सुन ले तो आपकी चलो, देखा है तुम्हारी बीवी-रानी को । मैं . मैं अधिक सुन न सकी । मेरा शरीर काँपने लगा । मैंने समझा कि यह मेरी दुर्बलता है । मेरा अधिकार मेरे ही सामने दूसरा ले और मैं प्रतिवाद न करके लौट जाऊँ, यह ठीक नही । मै थाली लिए घुस पड़ी । अनवरी अपने को छुडाती हुई उठ खडी हुई ! उसका मुंह विवर्ण था। शराव की महक से कमरा भर रहा था । उन्होने अपनी निर्लज्जता को स्पष्ट करते हुए पूछा- क्या है ? ___ भला मैं इसका क्या उत्तर देतो । हाँ, इतना कह दिया कि क्षमा कीजिए, मैं नही जानती थी कि मेरे आने से आप लोगो को कष्ट होगा। यह वडो असभ्यता है कि बिना पूछे किसी के एकान्त में .. उनकी वात काटकर अनवरी ने कहा-बीबी-रानी 1 मैं कलकत्ते मे डाक्टरी करने के सम्बन्ध म बाते कर रही थी। यह भी उसका दुस्साहस था | मै तो उसका उत्तर नहीं देना चाहती थी। परन्तु उसकी ढिठाई अपनी सीमा पार कर चुकी थी। मैंने कहा-वडी अच्छी बात है, मिस अनवरी ! आप कब जायेंगी? मैं अधिक कुछ न कह सकी । थाली रखकर लोट आयी । दूसरे दिन सवेरे ही अनवरी तो वनारस चली गयी और उन्होने कलकत्ते की तैयारी की । मां ने तितली: ३३३