पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३६३

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शैला सन्न हो गयी। उस भी रह-रह कर इन्द्रदेव पर क्रोध आता था। पुष्पा के प्रति स्त्रियो का हृदय प्राय विपम और प्रतिकूल रहता है। जव लाग कहते हैं कि व एक आंख से रोती हैं तो दूसरी स हंसती हैं, तब काई भूल नहीं करते। हाँ, यह वात दूसरी है कि पुरुषा के इस विचार म व्यगपूर्ण दृष्टिकोण का अन्त स्त्रियो को उनकी आर्थिक पराधीनता क कारण जब हम स्नेह करने के लिए चाध्य करते हैं, तव उनके मन मे विद्रोह को सृष्टि भी स्वाभाविक है | आज प्रत्येक कुटुम्ब उनके इस स्नेह और विद्रोह के द्वन्द्व से जर्जर है और असगठित है । हमारा सम्मिलित कुटुम्ब उनकी इस आर्थिक पराधीनता की अनिवाय असफलता है। उन्हे चिरकाल स वचित एक कुटुम्ब के आर्थिक सगठन को ध्वस्त करने के लिए दिन-रात चुनौती मिलती रहती है। जिस कुल से व आती हैं, उस पर से ममता हटती नही, यहाँ भी अधिकार को कोई सम्भावना न देखकर, व सदा घूमने वाली गृहहीन अपराधी जाति की तरह प्रत्येक कोटुम्विक शासन को अव्यवस्थित करने में लग जाती है । यह किसका अपराध है ? प्राचीन काल में स्त्रीधन की कल्पना हुई थी। किन्तु आज उसकी जैसी दुर्दशा है, जितने काड उसक लिए खडे होते हैं, वे किसी से छिपे नहीं। श्यामदुलारी का मन आज सम्पूर्ण विद्राही हो गया था । लडके और दामाद की उच्छृङ्खलता ने उन्हें अपने अधिकार का सजीव करन के लिए उत्तेजना दी। उन्होंने कहा-मिस शेला ! मैंन निश्चय कर लिया है कि अब किसी को मनाने न जाऊंगी । हाँ, मेरी बेटी का दुख स भरा भविष्य है और उसके लिए मुझे कोई उपाय करना ही होगा। वह इस तरह न रह सकेगी । मैंने अपने नाम की जमीदारी माधुरी को देने का निश्चय कर लिया है । तुम क्या कहती हो ? हम लोग तुम्हारी सम्मति चाहती है। मां जी, आपने ठीक साधा है । बीवी-रानी को और दूसरा क्या सहारा है । मैं समझती हूँ कि इसम इन्द्रदेव स पूछने की आवश्यकता नहीं, क्योकि उनके लिए कोई कमी नही । वह स्वय भी कमा सकते हैं और सम्पत्ति भी है ही। माधुरी अवार होकर शैला का मुंह देखने लगी । आज स्त्रियाँ सब एक ओर यो । पुरुषो की दुष्टता का प्रतिकार करने में सब सहमत थी। श्यामदुलारी न शैला का अनुकूल मत जानकर कहा-ता हम लोग आज ही बनारस जायंगी। वहाँ पहले मैं दान-पम की रजिस्ट्री कराऊँगी । तुम भी चलोगी? बिना कुछ सोचे हुए शैला ने कहा-चलूंगी । तितली ३३५