पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३६९

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अगों को मरोर लेती थी। गांव की सीमा म निर्जनता थी । उन्हें मनमानी वातचीत करने के लिए स्वतत्रता थी । पीली-पीली धूप, तीसी और सरसा के फूलो पर पड रही थी। वसन्त की व्यापक कला से प्रकृति सजीव हो उठो थी । सिंचाई से मिट्टी की सोधी महक, वनस्पतियो को हरियाली की और फूलो की गन्ध उस वातावरण मे उत्तेजना-भरी मादकता ढाल रही थी। राजकुमारी इस टोली को प्रमुख थी । वह पहले ही पहल इस तरह ब्याह के निमन्त्रण मे चली थी ! सयम का जीवन जैसे कारागार के बाहर आकर संसार को वास्तविक विचित्रता से और अनुभूति से परिचित हो रहा था। राजकुमारी को दूर से दीनानाथ के घर को भीड-भाड दिखाई पडी । उसकी सगिनियो का दल भी कम न था । उसने देखा कि राग-विरागपूर्ण जन-कोलाहल में दिन और रात को सन्धि, अपना दुख-सुख मिलाकर एक तृप्ति-भरी उलझन से ससार को आन्दोलित कर रही है । राजकुमारी का मन उसी मे मिल जाने के लिए व्यग्र हो उठा। ___जब वह पडितजी के घर पर पहुंची ता बारात की अगवानी में गीत गाने वाली कुल-कामिनियो के झुण्ड ने अपनी प्रसन्न चेष्टा, चपल सकेतो और खिलखिलाहट-भरी हंसी से उसका स्वागत किया। राजकुमारी ने देखा कि जीवन का सत्य है, प्रसनता । वह प्रसन्नता और आनन्द की लहरो मे निमग्न हो गई। तहसीलदार वारात का प्रबन्ध कर रहे थे। इसलिए गोधूली म जब बारात पहुँची तो वही सबके आगे था । इधर दीनानाय के पक्ष से चोवे अगवानी कर रहे थे । द्वारपूजा होकर बारात वापस जनवासे में लौट गई । वहाँ मैना का नाच होने लगा। इधर पडितजी के घर पर स्त्रियों का कोलाहल शान्त हो रहा था । बहुतसी तो लौटने लगी थी। पर राजकुमारी का दल अभी जमा था । गाना-बजाना चल रहा था। लग्न समीप था, इसलिए ब्याह देखकर हो इन लोगो की जाने की इच्छा थी। तितली, जो भीड में दूसरी ओर बैठी थी, उठकर आगन की आर आई। वह जाने के लिए छुट्टी मांग की थी। छपे हुए किनारे की सादी खादी की धोती। हाथो में दो चूड़ियाँ और मुनहले कडे । माथे मे सौभाग्य सिन्दूर । चादर की आवश्यकता नही । अपनी सलज्ज गरिमा को ओढे हुए, वह उन स्त्रियों की रानी-सी दिखलाई पडती थी। पडित को बडी लडकी जमुना शहर में ब्याही थी। उसने तितली का जाते तितली: ३४१