पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३७०

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देखा । देहात म यह ढग । वह चकित हो रही थी। मित्रता के लिए धनल हो कर वह सामने आकर खड़ी हो गई। वाह वहन ! तुम चली जाती हो । यह नही हागा । अभी नही जान दूंगी। चलो, बैठो। ब्याह देखकर जाना । __वह गाने वाले झुण्ड की ओर पकडकर उस ले चली । राजकुमारी ने तितली को दखा और तितली ने राजकुमारी को। तितली उसके पास पहुँची। आँचल का काना दोनो हाथा म पकडकर गांव की चाल से वह पैर छूने लगो । राजकुमारी अपने रोप की ज्वाला मे धधकती हुई मुंह फेर कर बैठ गई। जमुना का राजा के इस व्यवहार पर काध आ गया । वह तो तितली की मित्र थी। फिर दबने वाली भी नही । उसने कहा-बेचारी तो पैर छू रही है और तुम अपना मुंह घुमा लेती हो, यह क्या है। तुम ता तितली की ननद हा मैं कौन है ? यह सिर चढी ता स्वय ही दूल्हा खोज कर आई है । भला इस दिखावट की आवभगत स क्या काम ? राजकुमारी का स्वर बडा तीव्र और रूखा था। अब ता आ गई है जीजी-तितली ने हंसकर कहा । कुछ युवतियो ने उसकी बात पर हंस दिया । परन्तु एक दन ऐसा भी था, जो तितली से उग्र प्रतिवाद की आशा रखता था । गाना-बजाना बन्द हो गया। तितली और राजकुमारी का द्वन्द्व दखने का लोभ सब को उसी ओर आकर्षित किये था। एक ने कहा--सच तो कहती है, अव ता वह तुम्हार घर आ गई है। तुमको अब वह सब बाते भुला देनी चाहिए । मैं कर क्या रही हूँ। मैं तो कुछ बोलती भी नहीं। तुम लोग झूठ ही मरा सिर या रही हो । क्या मैं चली जाऊँ ?--कहती हुई राजकुमारो उठ खड़ी हुई। जमुना ने उसका हाय पकड कर विठलाया, और तितली भीचक-सी पने अपराधा को खोजने लगी। उसने फिर साहम एकत्र किया और पूछा-जीजी, मेरा अपराध क्षमा न परोगी? मैं कौन होती हूँ क्षमा करनेवाली ? तुमका हाय जाती हूँ, तुम्हारे पेरा पड़ती हूँ, तुम राजरानी हो, हम लोगा पर दया रखो। राजकुमारी और कुछ कहना हो बाहती थी कि किसी प्रौदा ने हंसकर कहा- वेचारी २ भाई का जादू-विद्या से इस कल की छोररी ने अपने बस म कर लिया है । उस दुरा न हो ? ३४२ : प्रसार वाहमय