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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३७१

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राजकुमारी ने देखा कि वह बनाई जा रही है, फिर भी तितली की ही विजय रही । वह जल उठी। चुप होकर धीरे से खिसक जाने का अवसर दखने लगी। पडित दीनानाथ कुछ क्रोध से भरे हुए घर म आये और अपनी स्त्री से कहने लगे-मैं मना करता था कि इन शहरवालो के यहाँ एक ब्याह करके देख चुकी हो, अव यह व्याह किसी देहात म ही करूंगा। पर तुम मानो तव तो। मॉग पर-मॉग आ रही है। अनार-शरवत चाहिए । ले आओ, है घर म ? इस जाडे म भी यह ढकोसला! मालूम होता है, जेठ-वैसाख की गरमी से तप रहे जमुना की मां धीरे से उठकर अपनी कोठरी म गई और बोतल लिये हुए बाहर आई । उसने कहा-फिर समधी हैं, अनार-शरवत ही तो मागते है । कुछ तुमसे शराव तो मागते नही । घवडाने की क्या बात है ? सुखदेव चौबे से कह दो, जाकर दे आव और समझा दे कि हम लोग देहाती हैं, पडित जी को साग सत्तू ही दे सकते है, ऐसी वस्तु न मांगे जो यहा न मिल सकती हो। जमुना की मा की एक बहन बडी हँसोड थी। उसने देखा कि अच्छा अवसर है । वह चिल्ला उठी-छिपकली। पडित जी-कहा-कहत हुए उछल पडे । सब स्त्रियाँ हँस पड़ी । जमुना की माँ न कहा-छिपकली के नाम पर उछलते हा, यह सुनकर समधी तो तुम्हारे ऊपर सैकडो छिपकलियां उछाल देगे। पडित जी ने कहा-तुम नही जानती हो, इसके गिरने स शुभ और अशुभ दखा जाता है । यह है बडी भयानक वस्तु । इसका नाम है 'विपतूलिका । सामने गिर पडे तो भी दुख देती है। पडित जी जव "विपतूलिका का उच्चारण अपने ओठो को बना कर बडी गभीरता स कर रह थ और सव स्त्रियां हंस रही थी, तब राजकुमारी ने तितली की ओर देखकर मन-ही मन घृणा से कहा-विपतूलिका । उस समय उसकी मुखाकृति वडो डरावनी हा गई थी। परन्तु सुखदेव चौबे को सामने देखते ही उसका हृदय लहलहा गया । रधिया का न जाने क्या सूझा, ढोल बजाती हुई मुखदव के नाम के साथ कुछ जोडकर गाने लगो। सब उस परिहास म सहयोग करने लगी। तितली उठकर मर्माहत-सी जमुना के पास चली गई। रात हो गई थी। राजकुमारी भी छुट्टी मांगकर अपनी बुधिया, कल्लो को लेकर चली । राह मे ही जनवासा पडता था। रावटियो के वाहर बडे-से-बडे चंदोवे के नीचे मैना गा रही थी तितली ३४३