पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अधूरा काम पूरा कर दिया है। उसे तो जाकर मां से कहोगी ही। फिर समय कहाँ मिलेगा। कल सवेरे जाओगी। एं। शैला मेज के फूलदार कपडे पर छपे हुए गुलाब की पखुरियां नोच रही थी। सिर नीचा था और आंखे डबडबा रही थी। वह क्या बोले ? इन्द्रदेव ने फिर कहा-तो आज यही रहना होगा। क्या तुम चाहते हो कि मैं अभी चली जाऊँ ? -बडे दुख से शैला ने उत्तर दिया। यह लो, मैं पूछ रहा हूँ । नही-नही-मैं तो तुम्हारी ही बात कर रहा हूँ। तुम तो उसी दिन चली जा रही थी। मैंने देखा कि तुम अपना काम अधूरा ही छोडकर चली जा रही हो, इसीलिए रोक लिया था। अब तो मैं समझता हूँ कि तुम अपने ग्राम-सुधार की योजना अच्छी तरह चला लोगी। मां को समझा देना कि जब इन्द्रदेव को ही अपने लिए सम्पत्ति की आवश्यकता नही रही, तब उन्ह चाहिए कि यह सचित सम्पत्ति अधिक-से-अधिक दीन-दु.खियो के उपकार में लगाकर पुण्य और यश के भागी बनें। तो, तुम अब भी गांव के सुधार में विश्वास रखते हो? मेरे इस त्याग में इस विचार का भी एक अश है शैला कि जब तक उस एकाधिपत्य से मैं अपने को मुक्त नहीं कर लेता, मेरो ममता उसके चारो ओर प्रेम की छाया की तरह घूमा करती। अब मेरा स्वगर्थ उससे नही रहा । मै तो समझता हूँ कि गावो का सुधार होना चाहिए । कुछ पढ़े-लिखे सम्पन्न और स्वस्थ लोगो को नागरिकता के प्रलोभनो को छोडकर देश के गाँवो मे बिखर जाना चाहिए। उनके सरल जीवन मे-जो नागरिको के ससर्ग से विषाक्त हो रहा है। -विश्वास, प्रकाश और आनन्द का प्रचार करना चाहिए। उनके छोटेछोटे उत्सवो म वास्तविकता, उनकी खेती मे सम्पन्नता और चरित्र मे सुरुचि उत्पन्न करके उनके दारिद्रय और अभाव को दूर करने की चेष्टा होनी चाहिए। इसके लिए सम्पत्तिशालियो को स्वार्थ-त्याग करना अत्यन्त आवश्यक है। किन्तु अधिकार रखते हुए तो उसे तुम और भी अच्छी तरह कर सकते थे । शक्ति केन्द्र यदि अधिकारी के संचय का सदुपयोग करता रहे, तो नियन्त्रण भलीभांति चल सकता है, नहीं तो अव्यवस्था उत्पन होगी। तुम्हारे इस त्याग का अच्छा ही फल होगा, इसका क्या प्रमाण है ? मैं तो समझती हूँ कि तुमने किसी झोक में आकर यह कर डाला । __ौला को यह बात सुनकर इन्द्रदेव हंसने लगे। उसी हंसी मे अवहेलना भरी थी। फिर उन्होने कहा--संसार के अच्छे-से-अच्छे नियम और सिद्धान्त बनते तितली: ३७६