पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४४०

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शैला ! अधीर न हो । वास्तव मे तुम्हारे पिता स्मिय का ही यह पत्र है। मैं छुट्टी लेकर जब इंगलैण्ड गया था, तब मैं उससे जेल में मिला था। ओह ! यह कितने दुःख की बात है। -शैला उद्विग्न हो उठी थी। शैला ! तुम्हारा पिता अपने अपराधों पर पश्चात्ताप करता है। वह बहुत सुधर गया है । क्या तुम उसे प्यार न करोगी? करूंगी, वाट्सन । वह मेरा पिता है । किन्तु, मैं कितनी लज्जित हो रही हूँ। और तुम्हारी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मैं क्या करूं ? बोलो! ___कुछ नही, केवल चचल मन को शान्त करो। पन तो मुझे बहुत दिन पहले ही मिल चुका था। किन्तु मैं तुमको दिखाने का साहस नही करता था। सभव है कि तुमको... मुझको बुरा लगता | कदापि नहीं। सब कुछ होने पर भी वह पिता है वाट्सन । तो चलो, वह कमरे म बैठे हुए तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे है। ऐ, सच कहना ! कहती हुई शैला कमरे मे वेग से पहुंची। एक बूढ़ा, किन्तु दलिष्ठ पुरुप, कुर्सी से उठकर खडा हुआ। उसकी बाँहे आलिंगन के लिए फैल गई। शैला ने अपने को उसकी गोद मे डाल दिया। दोनो भर पेट रोये। फिर बूढे ने सिसकते हुए कहा-शैला । जेन के अभिशाप का दण्ड मैं आज तक भोगता रहा । क्या बेटी, तू मुझे क्षमा करेगी ? मैं चाहता हूँ कि तू उसकी प्रतिनिधि बन कर मुझे मेरे पश्चात्ताप और प्रायश्चित्त मे सहायता दे। अब मुझको मेरे जीते-जी मत छोड देना । शैला ने आँसू-भरी आँखो से उसके मुख को देखते हुए कहा-पापा ! वह और कुछ न कह सकी, अपनी विवशता से वह कुढने लगी। इन्द्रदेव का बन्धन ! यदि वह न होता ? किन्तु यह क्या, मैं अभी तितली से क्या कह आई हूँ ? तब भी मेरा बूढा पिता । आह ! उसके लिए मैं क्या करूं ? उसे लेकर मैं...1 उसकी विचार-धारा का रोकते हुए वाट्सन ने कहा-~-शैला ! मैंने सब ठीक कर लिया है । तुम अब विवाहित हो चुकी हो, वह भी भारतीय रीति से तब तुमको अपने पति के अनुकूल रहकर ही चलना चाहिए, और उसके स्वावलम्वपूर्ण जीवन मे अपना हाथ वटाओ। नील-कोठी का काम तुम्हारे योग्य नहीं है। मिस्टर स्मिथ यहां पर अपने पिछले थोडे से दिन शान्ति सेवा-कार्य करते हुए विता लेगे, और तुमसे दूर भी न रहेगे। ४१६: प्रसाद वाङ्मय