पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४४५

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बरे ! तुम ननीगापाल का भूल गये क्या ? बोरू वावू के साथ। अरे हां ननो तुम हा ? मैं तो पहचान हो न सका। इस साहबी ठाट मे कौन तुमको ननोगोपाल कहकर पुकारेगा ? कहा वीरू बाबू कहां हैं ? क्या फिर रिक्शा खीचने का मन है ? वीरू वावू तो बडे घर की हवा खा रह हैं । उनका परोपकार का सघ पूरा जाल था। उन्होंने भर पेट पैसा कमा कर अपनी प्रियतमा मालती दासी का सन्दूक भर दिया। फिर क्या, लगे गुलछरै उडान । एक दिन मालती दासी स उनकी कुछ अनबन हुई। वह मार-पीट कर बैठे । उस दिन वह मदिरा मे उन्मत्त थे । तुम आश्चर्य करोगे न? हाँ वही बीरू जो हम लोगा को कभी अच्छी साक-भाजी भी न खाने का, सादा भोजन करन का उपदश देते थे, मालती के संग मे भारी पियक्कड बन गये । दूसरो को सदुपदेश देन में मनुष्य वड चतुर होते हैं। हाँ तो वह उसी मार-पीट के कारण जेल भेज दिये गये है। ___अच्छा भाई । तुम क्या करते हा? --मधुवन न जल के सहारे वासी और मूखी पूरियां गले म ठलते हुए पूछा। ____ तुम्हारे लिए बीरू से एक बार फिर लडाई हुई । मैने उनस जाकर कहा कि मधुबन के मुकदम में काई वकील खडा कीजिए। इतना रुपया उसन छाती का हाड ताडकर अपन लिए कमाया है। उन्होन कहा, मुझसे चोरो-डकैतो का कोई सम्बन्ध नही | भी दूसरी जगह नौकरी करन लगा। वहां काम करते हो ननी । कोई नौकरी मुझे भी दिला सकागे? नौकरी की तो अभी नहीं कह सकता। हाँ तुम चाहा तो मेरे साबुन क कारखान की दूकान हरिहरक्षेत्र के मले में जा रही है, मरे साथ वहाँ चल सकते हो । फिर वहां स लौटने पर देखा जायगा। पर भाई वहां भी कोई गडबड न कर बैठना। ता क्या तुमका विश्वास है कि मैंन उस पियक्कड़ का लूटा था और रिक्शा स घसीट कर पीटा भी था। ___ मधुवन उत्तेजित हा उठा था। उसन फिर कहा--तो भाई तुम मुझे न लिया जाय। ___ यह लो तुम ता बिगड गय । अरे मैंने तो हंसी की थी । ला वह मरा मामान भी आ गया । चतो तुम भी, पर ऐसे नगधग कहाँ चलोगे। पहले एक कुरता तो तुम्ह पहना दूं। अच्छा लारी पर बैठकर चलो हवडा, में कुरता लिए आता नना न सामान से लदी हुई लारी पर उम पेठा दिया । तितमी . ४२१