पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४८७

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___ पाटलिपुत्र में हलचल है। प्रान्त दुर्गा स मैनिका का तांता लग रहा है । गगा क किनार शिविरो की श्रेणी म उनका तात्कालिक निवास है । वृद्ध सेनापति और पुष्यमित कई दिना से उन्ह, नावा के द्वारा कान्यकुब्ज और रोहिताश्व भेजने म व्यस्त है। रोहिताश्व जानेवाली सना शाण क जलपथ से मणिभद्र की नायकता म जा चुकी है । अश्वारोहिया क माथ अग्निमित्र जायगा-ऐसी धारणा सबक मन म है, किन्तु कान्यकुब्ज क लिए, आज अश्वारोही सना के साथ सेनापति प्रस्थान करने वाल है । नगर म भारी उत्साह और प्रदर्शन है। सैनिको क लिए स्थान-स्थान पर आमाद-प्रमोद के साथ विदाई का समा राह है । नागरिकाएं पुष्पमाला और चदन मे उन्ह अभिनन्दिन कर रही है। आपानक और सगीत भी चल रहा है । धम-विजय की इच्छा रखने वाल सम्राट बृहस्पतिमिन शस्त्र-विजय क लिए उत्सुक है । महागज पर चढकर नगर के पश्चिम द्वार स सना-प्रयाण का निरीक्षण कर रहे थे । वीरा क खड्ग स सम्राट् की वन्दना हो रही है । बृहस्पतिमित्र इम उत्साह में भी जैस मशक ह । अन्त पुरिकाएँ गज-पक्ति पर बैठी हुई पुष्प वर्षा कर रहा है। घोडो के हीसने का शब्द तूर्यनाद के साथ दिशाआ का विकम्पित कर रहा है। शखा का उन्मुक्त स्वर दुदुभी के साथ तारण क ऊपर में आकाश-मडल को गंजा रहा है। किन्तु सम्राट् के मन में जैस उत्साह नही सिंह की ध्वजा की छाया म सना क पीछे वृद्ध सनापति धीरे धीरे प्रकाण्ड श्वताश्व पर सम्राट के दृष्टिपथ म आए । गजराज वैठा दिया गया । सनापति ने खड्ग शिर स लगाकर कहा- सम्राट् बृहस्पतिमिन की जय ' घार जयनाद स दिशाएँ प्रतिध्वनित हुई । सम्राट् ने सनापति का चन्दन का तिलक लगाया। वृद्ध ने अश्रुपूर्ण लाचन होकर कहा-"सम्राट् । मैं तो चला। जिस दिन का प्रतीक्षा में मरे कश धवल हो गए, वह सामने है। मरे निए आज स बढकर कान सा पुण्य-दिवस होगा, किन्तु मगध | जिसन शताब्दिया स वीरता और सस्कृति म भारत का प्रमुख वनन का गुरुभार अपन ऊपर लिया है, उसको मयादा जीवित रह । हम लोग साधारण शब्द-जान स ऊँचे उठकर सच्ची कमण्यता का--प्राणा का मोह छोडकर भी पालन कर यह मरी, इस वृद्ध शस्त्र-व्यव इरावती:४६६