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ही खिला दूं।" -फिर वही तीव्र कटाक्ष और रसीली मुसकान | अग्निमित्र ने कहा, "नही, इसकी आवश्यकता नही। —वह भूखा था ही, कुछ-कुछ खान लगा । और मन-ही-मन अपनी अवस्था पर विचार भी करने लगा। उसे सोचने का अवसर मिला, इस रहस्यमयी रमणी के साथ कैसा व्यवहार किया जाय । उसने धीरे से एक पान कादम्ब चढा लिया, फिर बोला___"मैं तो उस दिन की घटना भी कुछ नही समझ सका कालिन्दी । तुम जानती हो कि मगध मरे लिए नया है, विशेषत यह रहस्यो की नगरी कुसुमपुरी | मैं तो अभी इनको समझ भी नहीं पाया हूँ। मैं राजगृह की ओर जा रहा था। मार्ग अपरिचित हान से भटक रहा था । रात हो गई थी। तुम्हारा क्रन्दनस्वर सुनाई पडा, वहां चला गया, परन्तु वह घटना तो मुझे गर्व नगर की-सी जान पडती है। कुछ समझ मे नही आया। उस टूटी कोठरी मे जब तुम्हारा शब्द सुनकर मैं पहुँचा तो वहाँ अधकार था। किसी ने धीरे से मुझसे कहा'चुप रहिये। ' फिर जैसे किसी स्त्री ने मरा हाथ पकड लिया। उसमा हाथ थर-थर काँप रहा था । सम्भवत भय म वह मुझसे लिपट जाना चाहती थी।" _____ कालिन्दी अपनी हसी न रोक सकी। इधर अग्निमित्र पर कादम्ब ने रग चढा दिया था । वह कहने लगा "तुम हँसती हो, हाँ तो मुनो, तुम्हारे पास की ही कोठरी में पॉच मनुष्य जो ठहरे थे, वे बाहर निकल पडे । यह जानने के लिए कि कोई उपद्रव तो नही हो रहा है । वे इधर-उधर अधकार मे खोजने लगे। इतने मे एक पुलिन्दा मेरी कोठरी मे आया । साथ ही चार नही मैं भूल कर रहा हूं, पांच व्यक्ति चुन्नटदार काली घोतियां डाले, जिसमे कनटोप भी सिला था, जिसपर लाल स्वस्तिक लगा था, काठरी मे घुस आये । किवाड बन्द हो गया था। अब हम लोग सात व्यक्ति उसमे थे। उस स्त्री न अवगुण्ठन खीच लिया था। क्याकि कोठरी के किसी गुप्त स्थान पर से आवरण हटा देने से जब प्रकाश हो गया ता मैं चकित हो गया था। और वे मुझको देखकर आश्चर्य मे थे। कदाचित् वे मुझ पर आक्रमण किया ही चाहते थे, परन्तु स्त्री ने सकेत से उन्हे रोक दिया । मैं अपन खड्ग पर हाथ रखकर भविष्य की प्रतीक्षा कर रहा था। उन्होंने बण्डल खोल डाला । उसमें से बहुमूल्य आवरण में लिपटा हुआ एक पर निकालकर वे पहले लगे। कदाचित् वे न पढ सके।" 'हो, तब मैंने सकेत किया तुम्हे चुपचाप पढ़ लेन के लिए। फिर तुमन काना म कहा-'यह खारवेल के लिए जिनमूर्ति ले जान का निमन्त्रण है । मगध सम्राट ने उन्हे बुलाया है। फिर वह पुलिन्दा उसी तरह बांधकर छोड दिया गया। इरावती . ५७५