पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४९४

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और हम सब गहर ए गुप्त मार्ग मनिरल गये । नमन रहा गया frदया इस बचा मत ररना परन्न तुमन पिता म उम रात से रह दिया। और इस दण्ड भी उन भयाना स्वस्निा दर वाला न तुमसरा दना चाहा । परत तुम बच गय । यहा मर न तुम रहना चाहत हा मानिन्दो न हमकर अग्निमित्र वाला या तरह उबा मह दग रहा था। कालिन्दा न पिर कहा-- म नुम्ह सावधान पर दना चाहता था परन्तु जपमर न मिना । स्वस्तिा क गुप्तचर तुम दाना-पिता-पुत्र क पीछे नग थे । बन्छा ही हुमा गि राई पायल नहीं हुआ। कानिन्दी तुम क्या हो ? वहाँ तुम क्या गई या मुझ मालूम था कि पारवल में दूत के साथ वृहस्पतिमित्र रा दूत जा रहा है। वह क्या सन्दश है ? यह जान लेना स्वस्तिक के लिए आवश्यक था। गजगृह के बाहर ही धर्मशाला म उनका ठहरन के लिए तत्पर रराया गया जोर कौशल से वह राजसदश पद लिया गया। बस इतना तो बात है । न जान यहाँ से तुम भूल भटक्कर उसी समय वहाँ पहुँच गय थे । परन्तु तम यह सब क्या करती हा? इसलिए पि काई वीर पुरुप साहसा मरा सहायर नहा। मैं अपन जाण गृह म चुपचाप दुख क दिन काट रहा थो। मृत मग्राट शतधनुप न पदाचित मुझे अपना काम-वासना तृप्त करन र लिय परडवा मंगाया। सयोग में जिस दिन मुगाग प्रसाद के इस कोने म आई उसी दिन दुर्घटना न शतघनुप की मृत्यु हा गई। जान्तर्वेशिक न मरे लिए सर उपकरण अलकार दास, दासी और अन्य व्यवस्था ठीक कर दी थी। मैं यही रह गई और उसी का प्रतिशाध चाहती है। मौर्यो न नन्दा का विनाश रिया धा। म मौर्या का विनाश करूंगी --- कहत-कहत कालिन्दी तनकर खड़ी हो गई। उसके मुख पर उन्माद क लक्षण दिखाई पडे । नस फूल गई थी। मुख आरक्तिम और भयानर हा गया था। धीरे स उसन मणिमखला म स पतली धार की वृपाण निकाल ली। उमा उत्तरीय खिसक कर गिर पड़ा था । उन्नत वक्षस्थल पर नीली रेशमी पट्टी मात्र बंधी थी। वह अर्द्ध नग्न-सी थी । मोतिया की एकावली क नीचे छाती पर अग्निमित्र न आश्चय स दखा कि वही नात रग का, माणिक्य म काटकर बनाया हआ स्वस्तिक झून रहा था। अग्निमित्र क्षण भर क लिए स्तब्ध था। फिर सहसा अपन को संभाल कर उसन कहा- कालिन्दी । सावधान । ४७६ प्रसाद याडमय