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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/५२७

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तीना ही आश्चर्य से उसका मुंह देख रही थी। ब्रह्मचारी अब स्वस्थ होकर बैठ गया था, उसे जैसे किसी की चिन्ता नही । धनदत्त ने देखा, मणिमाला घर म ही किसी तरह भी उलझ गई। इतने मे एक शबर पक्षियो के जालो का झोला लादे वही पर आ गया। ताला पर बैठने वाले पक्षी उसके पास थे। उसने कहा-"स्वामी ! किसी तरह मैं इन्हे ले आया हूँ । राजभृत्या ने मुझे छोड दिया जब आप का नाम लिया । अब ता कल से न ले आ सकूँगा। इन सवका रखवा लेने की आज्ञा दीजिए।" धनदत्त फूल रहा था, उसका इतना प्रभाव | उमने समीप खडे कर्मचारी का आज्ञा दी-"देखो इन्हे रसोइए के पास भिजवा दो और उचित मूल्य दे दो।" जव वह कर्मचारी चला तो दूसरा दौडा हुआ आया। उसने कहा--- "स्वामी 1 एक बडा सुन्दर रथ आया है। उस पर बैठा हुआ एक युवक आपको पूछ रहा है।" . लिवा आओ" कह कर गर्व से उन स्त्रिया की ओर धनदत्त न सकेत किया । कालिन्दी और इरावती ने अपना अवगुण्ठन नीचा किया। स्निग्ध श्यामवर्ण, दाढी-मूंछ मुडा हुआ, कधो तक पीछे लटकी हुई सघन घुघराली लटे, कौशेय का कचुक, कमर मे कटिवन्ध, उसमे छोटी कृपाण, आँखो म निश्चितता, मतवाली चाल से एक व्यक्ति धीरे-धीरे चला जा रहा था। पीछे दूरी पर एक भृत्य था। उसको देखते ही धनदत्त बैठा न रह सका। वह असाधारण शक्तिशाली युवक था। उसने धनदत्त से ही पूछा-"आप का नाम श्रेष्ठि धनदत्त है " धनदत्त न सविनय कहा-"श्रीमान में सेवा में उपस्थित हूँ। क्या आज्ञा है । पधारिए, यह आसन है।" युवक ने आसन पर बैठते हुए कहा-"मैं कोलग राष्ट्र का राजपुरुष हैं. मुझे भगवान् अग्रजिन की प्रतिमा के लिए उत्तम वचमणियो के अलकार की आवश्यकता है।" धनदत न कहा--"प्रस्तुत है श्रीमान् ! देव-प्रतिमा के लिए तो कदानित कवल उज्ज्वल वर्ण के हीरक ही चाहिए । लीजिए मैं ले आता है।" धनदत्त ता मजूपा लाने भीतर गया। युवक ने एक बार संशोधक दृष्टि चारा ओर डाली। उसने दखा दी अवगुण्ठनवता बैठी हैं और एक मुक्त बावरण मासने युवक-जेस पाई बात स्मरण करन लगा । दूसरी म पड़ी। मणिमाला का चचल कुतूहल वाहत हो गया। उसने कहा "ब्रह्मचारीजा ! आइए उधर उद्यान म पर्ने । आप लोग भी वो रावतो: ५०६