सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/५३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

इधर लय छूटने लगा था । सहसा युवक सावधान होकर द्रुत गति मे बढा । और नर्तकी अपनी रस-वृष्टि में चपला स भी अधिक तीन थी। युवक ने तीव्रतम गति म भी उसको पिछडा न पाया ! उसने वीणा को विराम दते हुए 'साधुवाद से उस नर्तकी का सत्कार किया। किन्तु इरावती अब ठीक अग्निमित्र के सामने बैठ गई थी। और वह साहसी कलिंग युवक अनुराग-भरी आँखो से उसकी ओर देखता हुआ अपनी एकावली उतारने लगा। उधर अग्नि की तरह जलता हुआ अग्निमित्र अपनी कृपाण पर हाथ रख रहा था । कोई क्षण किसी भी घटना की प्रतीक्षा कर रहा था। जालीदार चादी के बडे-बडे निवात, जिनके भीत अभ्रक लगे हुए थे, अपने पचदीप को जैसे अपने भीतर-ही-भीतर जला रहे थे, ठीक उसी तरह अग्निमित्र जल रहा था । रुकावट इतनी ही थी कि थकी हुई इरावती सिर झुकाए, बकिम ग्रीवा किये, तिरछी आखो से उसी को देख रही थी। एकावली निकल चुकी थी। वह अजलि म रख कर आगे बढ़ाई भी गई। किन्तु इरावती ने कह दिया-"मैं आय कालिन्दी की अनुचरी हूँ। मैं उपहा नहीं ले सकती। क्षमा कीजिए। सवकी आँखे कालिन्दी को आर धूमी । किन्तु वह मायाविनी कालिन्दी मुस्करा कर बोली-"आर्य, क्षमा कीजिए। आप आज पाटलिपुत्र के नागरिको के अतिथि हैं। अतिथि का मनोरजन करना हम लोगो का कर्तव्य है, उसम पुरस्कार का प्रलोभन नही।" युवक को भवे कुछ खिंची । उसकी कुतूहलपूर्ण साहसिकता अपना आवरण उतार कर फकना चाहती थी कि केयूरक न जाने कहाँ से नग्न खड्ग लिए उछलता आ पहुंचा । उसने उन्मत भाव से कहा-"देव | हम लोग घिर गय है। कुछ काले वस्नो से ढंके सैनिको ने इस सम्पूर्ण उद्यानगृह को अवरुद्ध कर लिया है।" युवक ने खड्ग उठा कर कहा-"नही केयूरक ! घबडाओ नही । खारवेल ने जो साहसिक कर्म किया है, तो वह प्रतिकार भी जानता है।' कालिन्दी भय दिखलाती हुई चिल्ला उठी-“कलिंग चक्रवर्ती खारवेल ।' किन्तु भीतर-भीतर वह जैसे हंस रही थी। अग्निमिन ने विनात स्वर में कहा -"महाराज । मैं वचन देता हूँ। महानायक अग्निमित्र के जीवित रहते आप निश्चित रहे। और खारवल ने कालिन्दी का दखा । उसने कहा-"तो तुम्ही लोगो का राजगृह म मैंने देखा था।" घनदत्त भयभीत और विमूढ़-सा हो रहा था, परन्तु ब्रह्मचारी ने कहा"तो अब विश्राम करना चाहिए।" २१८ प्रसाद वाङ्मय