पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/७१

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क्या है कौन जान । यदि आज न सही, तो भी एक दिन जनाहार से प्राण छटपटाकर जायगा ही-तव विलम्ब क्या? मगल | भगवान् जानते होगे कि तुम्हारो शय्या पवित्र है । कभी मैंने स्वप्न म भी तुम्ह छोडकर इस जीवन में किसी स प्रेम नहीं किया, और न तो मैं कलुपिन हुई। यह तुम्हारी प्रेम-भिखारिनी पैस की भीख नहीं मांग सकती और न पैसे क लिए अपनी पवित्रता वेच सकती है । तब दूसरा उपाय ही क्या ? मरण वो छोड़ कर दूसरा कौन शरण देगा? भगवान् । तुम यदि कही हा, तो मेरे साक्षी रहना। वह गगा मजा हो चुकी थी कि सहसा एक वलिष्ठ हाथ न उस पकडकर रोक लिया । उसन छटपटाकर पूछा- तुम कौन हो, जो मेरे मरन का भी मुख छोनना चाहते हो? अधम होगा, आत्महत्या पाप है। -एक लम्बा सन्यासी कह रहा था। पाप कहा | पुण्य किसका नाम ? मैं नही जानती । मुख खोजती रही दुख मिला दुख ही यदि पाप है, तो में उसस छूटकर मुख की मौत मर रही हैपुण्य कर रही हूँ, करन दा। ___ तुमको अकर मरन का अधिकार चाह हा भी, पर एक जीव-हत्या तुम और करन जा रही हो, वह नही होगा। चलो तुम भी, यही पणशाला है, उसम रात भर विश्राम करो। पात काल मरा शिप्य आवगा और तुम्ह अस्पताल ल जायगा । वहा तुम अन चिन्ता स भी निश्चिन्त रहोगी । बालक उत्पन होन पर तुम स्वतत्र हो, जहा चाहो चली जाना--सन्यासी जैस आरमानुभूति स दृढ आज्ञा भरे शब्दा म यह रहा या । तारा को वात दुहराने का साहस न हुआ । उसके मन म बालक का मुख देखन की अभिलापा जग गई । उसन भी सकल्प कर लिया कि बालक का अस्पताल म पालन हो जायगा, फिर में चली जाऊँगी। वह सन्यासी के सकेत किय हुए कुटीर की ओर चली। अस्पताल की चारपाई पर पडी हुई तारा अपनी दशा पर विचार कर रही थी। उसका पीला मुख, धंसी हुइ आँख, करुणा की चित्रपटी बन रही थी। मगल का इस प्रकार छोडकर चले जाना, सव कप्टो स अधिक कसकता था। दाई जब साबूदाना लेकर उसके पास आती, तर वह बडे क्प्ट स उठकर थोडासा पी लतो । दूध कभी कभी मिलता था, क्योकि अस्पताल जिन दोना के लिए बनते हैं, वहाँ उनको पूछ नहीं। उसका लाभ भी सम्पन ही उठाते है । जिस रोगी के अभिभावका स कुछ मिलता, उसी की सवा अच्छी तरह होती, दूसरे ककाल ४१