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के कष्टो की गिनती नही । दाई दाल का पानी और हल्की गटी लकर आई । तारा का मुंह खिडकी को आर था। दाई ने कहा-लो, कुछ या लो। अभी मरी इच्छा नही-~-मुंह फेरे ही तारा ने कहा । तो क्या काई तुम्हारो लौडी लगी है, जो टहरपर ल आवेगो । लना हा, तो अभी ले लो। मुझे भूख नही दाई । --तारा न परुण स्वर से कहा। क्या, आज क्या है ? पेट म वडा दर्द हा रहा है---वहत-बहत तारा राहन लगी। उसको आँखा स आँमू वहन लगे । दाई न पास जावर दया, फिर चली गई। थोडी दर म डाक्टर के साथ दाई फिर आई। डाक्टर न परीक्षा की। फिर दाई स कुछ सक्त किया । डाक्टर चला गया । दाई न कुछ मामान लाकर वहाँ रखा, और भी एक दूसरी दाई आ गई । तारा की व्यथा वढने लगी-वही कष्ट जिस स्त्रियाँ ही झेल सकती है, तारा + लिए असह्य हा उठा, वह प्रसव-पीडा स मूछित हो गई । कुछ क्षणा म चेतना हुइ, फिर पीडा हान लगी। दाइ न अवस्था भयानक हान की सूचना डाक्टर का दी । वह प्रसव करान के लिए प्रस्तुत हाकर जाया । सहसा वड कष्ट स तारा न पुत्र-प्रसव क्यिा । डाक्टर न भीतर आन की आवश्यकता न समझी, वह लौट गया । सूतिका-र्म म शिक्षित दाइया न शिशु को संभाला। तारा जव सचेत हुई, नवजात शिशु का दखकर एक बार उसक मुख पर मुस्कराहट आ गई। तारा रुग्ण थी, उसका दूध नही पिलाया जाता । वह दिन म दा वार बच्चे को गाद म ले पाती, पर गोद म लेते ही उस जैसे शिशु स घृणा हो जाती। मातृस्नह उमडता, परन्तु उसक कारण तारा को जो दुर्दशा हुई थी, वह सामन आकर खड़ी हो जाती । तारा काप उठती । महीना बीत गये । तारा कुछ चलनफिरने याम्य हुई । उसन साचा---महात्मा न कहा था कि बालक उत्पन्न होन पर तुम स्वतन्त्र हा, जो चाह कर सकती हा । अब मैं अपना जीवन क्यो रर्ख, अब गगा माई की गोद म चलूं। इस दुखमय जीवन से छुटकारा पान का दूसरा उपाय नही। तीन पहर रात वीत सुकी थी। शिशु सा रहा था, तारा जाग रही थी। उसन एक बार उसक मुख का चुम्बन क्यिा, वह चौक उठा, जैस हँस रहा हो । ४२ प्रसाद वाङ्मय