पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/७७

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थी। चाँदनी मे चमेली का सौरभ मिल रहा था । निरजन रास की राका-रजनी का विवरण सुना रहा था। गोपियो ने किस तरह उमग म उन्मत्त होकर पालिन्दी-कूल में कृष्णचन्द्र के साथ रास-क्रीडा में आनन्द-विह्वल होकर शुल्कदासियो के समान आत्मसमर्पण किया था, उसका मादक विवरण स्त्रिया के मन का बेमुध बना रहा था । मगल-गान होने लगा। निरजन रमणिया के कोकिलवण्ठ म अभिभूत होकर तकिये के सहारे टिक गया। रात-भर गीत-वाद्य का ममारोह चला। विजय ने एक बार आकर देखा दशत किया, प्रसाद लेकर जाना चाहता था नि सामने बैठी हुई सुन्दरियो के झुण्ड पर सहसा दृष्टि पड गई । वह रुक गया। उसकी इच्छा हुई कि वैठ जाय, परन्तु माता के सामने बैठने का साहस न हुआ। जाकर अपन कमरे में लेट रहा । अकस्मात् उसके मन मे मगलदेव का स्मरण हा गया। उस रहस्यपूर्ण युवक के चारो ओर उसके विचार लिपट गये परन्तु वह मगन के सम्बन्ध मे कुछ निश्चित नही कर सका। केवल एक बात उसके मन म जग रही थी-भगल को मित्रता उसे वाछित है। वह सो गया। स्कूल म पढनेवाला विजय इम अपने उत्सवो की प्रामाणिकता की जांच स्वप्न में करने नगा । मगल से इसके सम्बन्ध में विवाद चलता रहा । वह कहता कि-मन को एकाग्र करन के लिए हिन्दुआ के यहां यह एक अच्छी चाल ह । विजय तीव्र विरोध करता हआ कह उठा-इसम अनक दाप है, केवल एक अच्छे फल के लिए बहुत स दाप करते रहना अन्याय है। मगल ने कहा-अच्छा फिर किसी दिन समझाऊँगा। विजय की आँख खुली, सबेरा हो गया था। उसके घर म हलचल मची हुई थी। उसने दासी से पूछा-क्या बात है ? दासी ने कहा---आज भण्डारा है । विजय विरक्त होकर अपनो नित्यक्रिया में लगा। साबुन पर क्रोध निकालन लगा, तौलिय की दुर्दशा हो गई । वल का पानी बेकार गिर रहा था, परन्तु वह आज नहाने की कोठरी से बाहर निकलना ही नही चाहता। तो भी समय पर वह स्कूल चला गया। किशोरी ने कहा भी-आज न जा, साधुआ का भोजन है, उनको सवा वीच हो में बात काटकर विजय ने कहा---आज फुटवाल है, मुझे शीघ्र जाना है। विजय बडी उत्तेजित अवस्था में स्कूल चला गया। ककाल ४७