पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/११८

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सखी ! क्या शत्रु का अधिकार सर्वत्र हो गया, और प्रजा ने भी उसे राजा स्वीकार कर लिया ?" कमला - "दुर्दैव ने सब करा दिया।" राज्यश्री--"क्या मालवराज ही इसका नेता है ? विमला--"उसी ने तो सब किया।" (देवगुप्त का प्रवेश) देवगुप्त--"धन्यवाद है ईश्वर को कि अब आप अच्छी है।" राज्यश्री--"नराधम ! नीच ! तू यहाँ क्यो आया है ?" देवगुप्न--"मुन्दरी ! क्यो इतना क्रोध करती हो ?" राज्यश्रो--"चाण्डाल ! सर्वस्व हरण करके पूछता है, क्या किया ? हरिणी को वाणविद्ध करके अहेरी पूछता है कि 'तुम्हे चोट तो नही लगी"। अधखिली बसन्त की कली को जलती हुई धूलि मे पटक कर गर्मी का अन्धड़ चिल्लाकर पूछना है "तुम कमी हो"। शान्त सरोवर की सौरभमयी कुमुदिनी को पैरो मे कुचल कर मतवाला हाथी भी उससे पूछता है कि "तुम अच्छी तो हो”। दुष्ट ! नारकी कीडा हट सामने से। देवगुप्त--"तुम्हारे लिये ! केवल तुम्हारे लिये यह सब हमने किया, और ऐसे कठोर शब्दो के लिये क्षमा भी तुम्ही को है । राज्यश्री--"तेरे ऐसे अधम को मै पैरो मे कुचलती हूं। पिशाच ! जा, जो जी मे आवे कर । क्या मरने से भी किसी को रोक सकता है ?" देवगुप्त--(ताली बजाता है, चार प्रहरियों का प्रवेश) "शीघ्र इस दुष्टा को बांध लो और इमे बन्दीगृह मे रखो।" (प्रहरी, राज्यश्री को घेर लेते हैं) (पट-परिवर्तन) पंचम दृश्य . (मधुकर प्रकोष्ठ में) मधुकर-देखे अब और क्या होता है ?" (विकटघोष, पीछे से चपत लगाता है) मधुकर-"भाई तुम कौन हो।" विकटघोष--"मेरा नाम है विकटघोष ।" मधुकर--"तब आप शंखघोष कीजिये । यह रोएंदार खेजड़ी क्यो बजा १०२ : प्रसाद वाङ्मय