पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/२४०

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भागन्धी-तभी कई दिनों से इधर नहीं आते हैं, अच्छा नर्तकियों को तो बुला ला। नवीना से भी कह दे कि वह शीघ्र आवे और आसव लेती आवे । [दासी का प्रस्थान] मागन्धी-(आप-ही-आप)-गौतम ! यह तुम्हारी तितिक्षा तुम्हें कहां ले जायगी? यह तुमने कभी न विचारा कि सुन्दरी स्त्रियां भी संसार मे अपना कुछ अस्तित्व रखती हैं। अच्छा तो देखें कौन खडा रहता है ? [नवीना का पान-पात्र लेकर प्रवेश] नवीना-देवी की जय हो ! मागन्धी-तुम्हे भी बुलाना होगा, क्यों ? महाराज नही आते है तो तुम सब महारानी हो गयी हो न? नवीना-दासी को आज्ञा मिलनी चाहिये, यह तो प्रतिक्षण श्रीचरणों में रहती है । (पान कराती है) मागन्धी-महाराज आयेगे कि नहीं, इसका पता लगाकर शीघ्र आओ-- (नवीना जाती है, मागन्धी आप-ही-3 -आप गाती है) अली ने क्यों भला अवहेला की। चम्पक-कली खिली सौरभ से उषा मनोहर बेला की। विरस दिवस, मन बहलाने को मलयज से फिर खेला की। अली ने क्यों भला अवहेला की। नवीना-(प्रवेश करके)-महाराज आया ही चाहते हैं । मागन्धी -अच्छा आज मुझे बड़ा काम करना है, नवीना ! नर्तकियों को शीघ्र बुला। मेरी वेष-भूषा ठीक है न-देखो तो- नवीना--वाह स्वामिनी, तुम्हें वेष-भूषा की क्या आवश्यकता है-यह सहज सुन्दर रूप बनावटों से और भी बिगड़ जायगा। मागन्धी-(हँसकर) -अच्छा, अच्छा, रहने दे, और सब उपकरण ठीक रहे, समझी ? कोई वस्तु अस्त-व्यस्त न रहे । अप्रसन्नता की कोई बात न होने पावे । उस दिन जो कहा है, वह ठीक रहे । नवीना-वह भी आपके फिर से कहने की आवश्यकता है ? मैं सब अभी ठीक किये देती हूँ। (जाती है) [एक ओर से उदयन का और दूसरी ओर से नर्तकियों का, सब नाचती हैं और मागन्धी उदयन का हाथ पकड़कर बैठाती है] [नर्तकियों का गान] प्रवेश। २२० । प्रसाद वाङ्मय