पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/२५३

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दौवारिक-(प्रवेश करके) -जय हो देव आर्य देवदत्त आ रहे हैं। (देवदत्त का प्रवेश) देवदत्त-सम्राट् कल्याण हो, धर्म की वृद्धि हो, शासन सुखद हो ! अजातशत्रु-नमस्कार भगवन् ! आपकी कृपा से सब कुछ होगा और यह उसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि आवश्यकता के समय आप पुकारे हुए देवता की तरह आ जाते है। देवदत्त-(बैठता हुआ)-आवश्यकता कैसी राजन् ! आपको कमी क्या है, और हम लोगों के पास आशीर्वाद के अतिरिक्त और धरा ही क्या है ? फिर भी सुनूं- अजातशत्रु-कोसल के दांत जम रहे हैं । वह काशी की प्रजा में विद्रोह कराना चाहता है । वहाँ के लोग मगध को राजस्व देना अस्वीकार करते है। देवदत्त-पाखण्डी गौतम आजकल उसी ओर घूम रहा है, इसीलिये । कोई चिन्ता नही । गौतम की कोई चाल नही लगेगी। यदि मुनिवन धारण करके भी वह ऐसे साम्राज्य के पड्यन्त्रो मे लिप्त है, तो मै भी हठवश उसका प्रतिद्वन्दी बनूंगा। परिषद का गान करो। अजातशत्र --जैसी आज्ञा (दौवारिक से)-जाओ जी, परिषद् के सभ्यों को बुला लाओ। [दौवारिक जाता है, फिर प्रवेश करता है] दौवारिक-सम्राट् की जय हो ! कोसल से कोई गुप्त अनुचर आया है और दर्शन की इच्छा प्रकट करता है । देवदत्त-उसे लिवा लाओ। [दौवारिक जाकर लिवा लाता है! दूत-मगध-सम्राट् की जय हो | कुमार विरुद्धक ने यह पत्र श्रीमान् की सेवा मे भेजा है। [पत्र देता है, अजातशत्रु पत्र पढ़कर देवदत्त को देता है] देवदत्त-(पढ़ कर)-वाह, कैमा सुयोग | हम लोग क्यों न सहमत होंगे ! दूत, तुम्हे. शीघ्र पुरस्कार और पत्र मिलेगा-जाओ, विश्राम करो। (दूत जाता है) अजातशत्र -गुरुदेव, बड़ी अनुकूल घटना है | मगध जैमा परिवर्तन कर चुका है, वही तो कोसल भी चाहता है। हम नही समझते कि बुड्ढो को क्या पड़ी है और उन्हे सिहासन वा क्तिना लोभ है। क्या यह पुरानी नियन्त्रण मे बंधी हुई, संसार के कीचड़ मे निमज्जित राजतन्त्र की पद्धति, वीन उद्योग को असफल कर देगी? तिल-भर भी जो अपने पुराने विचारो से हटना नहीं चाहता, उसे अवश्य नष्ट हो जाना चाहिये, क्योकि यह जगत ही गतिशील है। अजातशत्रु : २३३