पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/२६०

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शक्तिमती-फिर क्या हुआ मल्लिका -रथ पर अकेले मुझे लेकर वहां चले । उस दिन मेरा परम सौभाग्य था, सारी मल्लजाति की स्त्रियां मुझ पर ईर्ष्या करती थी। जब मैं अकेली रथ पर बैठी थी, मेरे वीर स्वामी ने उन पांच सौ मल्लों से अकेले युद्ध आरम्भ किया और मुझे आज्ञा दी–'तुम निर्भय होकर जाओ सरोवर में स्नान करो या जल पी लो।' शक्तिमती-उस युद्ध मे क्या हुआ? मल्लिका-वैसी बाण-विद्या पाण्डवों की कहानी में मैने सुनी थी। देखा, उनके धनुष कटे थे और कमरबंद से ही वे चल सकते थे। जब वे समीप आकर खड्ग-युद्ध मे आह्वान करने लगे, तब स्वामी ने कहा-'पहले अपने शरीर की अवस्था को देखो, मैं अर्द्धमृतक घायलो पर अस्त्र नही चलाता।' फिर उन्होने ललकार कर कहा-'वीर मल्लगण, जाओ, अस्त्रवैद्य से अपनी चिकित्सा कराओ, बीच मे जो अपनी कमरबंद खोलेगा, उसकी मृत्यु निश्चित है !' 'मल्ल-महिलाओं की ईर्ष्या और उस सरोवर का जल स्वेच्छा से पान कर मैं कोसल लौट आयी। शक्तिमती--आश्चर्य, ऐसी बाण-विद्या तो अब नही देखने मे आती ! ऐसी वीरता तो विश्वास करने की बात ही है, फिर भी मल्लिका ! राजशक्ति का प्रलोभन, उसका आदर-अच्छा नही है, विष का लड्डू है, गन्धर्वनगर का प्रकाश है। कब क्या परिणाम हो--निश्चय नही है और इसी वीरता से महाराज को आतक हो गया है । यद्यपि मैं इस समय निराहत हूँ, फिर भी मुझमे उनकी बाते छिपी नही है । मल्लिका ! मै तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ, इसलिए कहती हूं- मल्लिका-क्या कहना चाहती हो रानी ! शक्तिमती-शैलेन्द्र डाकू के नाम गुप्त आज्ञापत्र जा चुका है, कि यदि तुम बन्धुल का बध कर सकोगे, तो तुम्हारे पिछले सब अपराध क्षमा कर दिये जायंगे, और तुम उनके स्थान पर सेनापति बनाये जाओगे। मल्लिका-किन्तु शैलेन्द्र एक वीर पुरुष है। वह गुप्त हत्या क्यो करेगा? यदि वह प्रकट रूप से युद्ध करेगा, तो मुझे निश्चय है कि कोसल के सेनापति उसे अवश्य बन्दी बनावेगे। शक्तिमती -किन्तु मैं जानती हूं कि वह ऐसा ही करेगा, क्योकि प्रलोभन बुरी वस्तु है। मल्लिका-रानी ! बस करो ! मैं प्राणनाथ को अपने कर्तव्य से च्युत नही करा सकती, और उनसे लौट आने का अनुरोध नही कर सकती। सेनापति का राजभक्त कुटुम्ब कभी विद्रोही नही होगा और राजा की आज्ञा से वह प्राण दे देना अपना धर्म समझेगा-जब तक कि स्वयं राजा, राष्ट्र का द्रोही न प्रमाणित हो जाय। २४० : प्रसाद वाङ्मय