पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/४०६

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स्त्री है। उसने ब्याह का प्रस्ताव किया था। मैं भी ब्याह के पवित्र बन्धन में बंधकर राजा होकर सुखी होता, परन्तु मेरी मानसिक अव्यवस्था कैसे छाया-चित्र दिखलाती है ! कोई अहष्ट शक्ति संकेत कर रही है-नहीं, कामना एक गर्वपूर्ण सरल हृदय की स्त्री है। रंगीन तो हैं, पर निरीह इन्द्रधनुष के समान उदय होकर विलीन होने वाली है। तेज तो है, पर वेदी के धधकाने से जलने वाली ज्वाला है। मैं उसको अपना हृदय-समर्पण नहीं कर सकता। मुझको चाहिये बिजली के समान वक्र रेखाओं का सृजन करने वाली-आँखों को चौंधिया देने वाली तीव्र और विचित्र ज्वाला, जिसके हृदय में ज्वालामुखी धधकती हो, जिसे ईधन का काम न हो, वही दुर्दमनीय तेज ज्वाला । मैं उसी का अनुगत हूँगा। यह हृदय उसी का लोहा मानेगा। इस फूलों के द्वीप में मधुप के समान विहार करूंगा। मैं इस देश के अनिर्दिष्ट आकाश-पथ का धूमकेतु हूँ। चलू, मेरी महत्त्वाकांक्षा ने अवकाश और समय दोनों की सृष्टि कर दी है। उसमें पदार्थो के द्वारा नयी सृष्टि के साथ मैं भी कुहेलिका सागर में विलीन हो जाऊँ (जाता है) दृश्या न्त र पञ्चम दृश्य [उपामना-गृह नवीन रूप में, विलास सब लोगों का समझा रहा है, सब लोगों को खड़े होकर अभिवादन करना सिखला रहा है, बीच में वेदी, सामने सिंहासन और दोनों ओर चौकियाँ हैं, राजदण्ड हाथ में लिए हुए कामना रानी का प्रवेश, पीछे सेनापति विनोद और सैनिक] कामना-(सिंहासन के नीचे वेदी के सामने खड़ी होकर) हे परमेश्वर ! तुम सब से उत्तम हो, सव से महान् हो, तुम्हारी जय हो । सब-तुम्हारी जय हो। विलास-आप आसन ग्रहण करें। [कामना मञ्च पर बैठती है] कामना-आप लोगों को सुशासन की आवश्यकता हो गयी है; क्योंकि इस देश में अपराधों की संख्या बहुत बढ़ती चली जा रही है। यह मेरे लिए गौरव की बात है कि मुझे आप लोगों ने इसके उपयुक्त समझा है। परन्तु आप लोगों ने मेरे और अपने बीच का सम्बन्ध तो अच्छी तरह समझ लिया होगा ? एक-नहीं ! विलास-(आश्चर्य से) नहीं समझा ! अरे, तुमको इतना भी नहीं ज्ञान हुआ कि ये तुम्हारी रानी हैं, और तुम इनकी प्रजा ? ३८६: प्रसाद वाङ्मय