पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५०६

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भरने मारने मे जितना पटु है, उतना षड्यंत्र में नहीं। आपके रहने से सो बंधुवर्मा उत्पन्न होगे । आप शीघ्रता कीजिये। स्कंदगुप्त-बंधुवर्मा ! तुम बड़े कठोर हो। बंधुवर्मा-शीघ्रता कीजिये । यहाँ हूणों को रोकना मेरा ही कर्तव्य है, उसे मैं ही करूंगा। महाबलाधिकृत का अधिकार में न छोड़ेगा। चक्रपालित वीर है, परंतु अभी वह नवयुवक है, आपका वहां पहुंचना आवश्यक है। भटार्क पर विश्वास न कीजिये। स्कंदगुप्त--मैंने समझा कि हूणों के सम्मुख वह विश्वासघात न करेगा। बंधुवर्मा-ओह ! जिस दिन ऐमा हो जायगा, उस दिन कोई भी इधर आँख उठाकर न देखेगा-सम्राट् ! शीघ्रता कीजिये ! स्कंदगुप्त-(आलिंगन करता है) मालवेश की जय ! बंधुवर्मा-महाराजाधिराज श्री स्कंदगुप्त की जय ! [चर के साथ स्कंदगुप्त जाते हैं/नेपथ्य में रणवाद्य/शत्रु-सेना आती है। हूणों की सेना से विकट युद्ध/हूणों का मरना, घायल होकर भागमा/बंधुवर्मा की अंतिम अवस्था/गरुड़ध्वज टेककर उसे चूमना] बंधुवर्मा-(वम तोड़ते हुए) विजय ! तुम्हारी""विजय..! आर्य साम्राज्य की जय ! बंधुवर्मा-भाई ! स्कन्दगुप्त से कहना कि मालव-वीर ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की, भीम और देवसेना उनकी शरण है। सैनिक-महाराज | आप क्या कहते है ! (सब शोक करते हैं) बंधुवर्मा-बंधुगण-! यह रोने का नही-आनंद का समय है। कौन वीर इसी तरह जन्मभूमि की रक्षा मे प्राण देता है, यही मैं ऊपर से देखने जाता हूँ। सैनिक-महाराज बंधुवर्मा की जय ! [गरुडध्वज की छाया में बंधुवर्मा की मृत्यु] .... श्या न्त र षष्ठ दृश्य [दुर्ग के सम्मुख कुभा-तट का रणक्षेत्र/चक्रपालित और स्कंदगुप्त] चक्रपालित--सम्राट् ! प्रतारणा की पराकाष्ठा | दो दिनों से जान-बूझकर शत्र को उस ऊँची पहाड़ी पर जमने का अवकाश दिया जा रहा है। आक्रमण करने से मैं रोका जा रहा हूं-मगध की समस्त सेना उसके संकेत पर चल रही है। ४८६ : प्रसाद वाङ्मय