पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५०७

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1 ? ? स्कदगुप्त चक्र | कुभा में जल बहुत कम है, आज ही उतरना होगा। तुम्हे दुर्ग मे रहना चाहिये । मैं भटार्क पर विश्वास तो करता ही नही परतु उस पर प्रकट रूप से अविश्वास का भी समय नही रहा। चक्रपालित-नही सम्राट् | उसे बदी कीजिये । वह देखिये-आ रहा है ! भटार्क--(प्रवेश करके) राजाधिराज की जय हो । स्कदगुप्त--क्यो सेनापति | यह क्या हो रहा है " भटार्क --आक्रमण की प्रतीक्षा सम्र ट् । स्कदगुप्त- --या समय की? भटार्क--सम्राट वा मुझ पर विश्वास नहीं है, यह"" चक्रपालित--विश्वाम तो कही से क्रय नही किया जाता । भटार्क-तुम अभी बारात हो । चक्रपानिन--दुराचारी । कृतघ्न ? अमी मे तेरा क्लेजा फाड खाता, तेरा.. भटार्क --सावधान अब मे महन नहीं कर सार"। (तलवार पर हाथ रखता है) परन्दगप्त-मटा ? वह नाम है। कूट मनगा, वाक्चातुरी नही जानता-- चुप रहा चक्र ' (चक्रपालित और भटार्क सिर नीचा कर लेते है) भटार्क । प्रवचना का समय नहीं है। स्मरण रखना--कृतघ्नो और नीचो की क्षेणी में, तुम्हारा नाम पहले रगा। (भटार्क चुप रहता है) युद्ध के लिए प्रस्तुत हो । भटार्क--मेरा यड्ग माम्राज्य की मेया करेगा। स्कदगुप्त--अच्छा तो अपनी मेना लेकर तुम गिरिमकट पर पीछे से जाक्रमण करो और सामने से मै नाता हू । चत्र | तुम दुर्ग की रक्षा करो। भटार्क--जैसी आज्ञा | नगरहार के स्कधावार को भी सहायता के लिए कहला दिया जाय तो अच्छा हो । स्कदगुप्त चर गया है । तुम शीघ्र जाओ । देखो सामने शत्र दीख पडते हे। (भटार्क का प्रस्थान) चक्रपालित--तो मै बैठा रहू स्कदगुप्त--भविष्य अच्छा नही है चत्र | नगरहार से समय पर सहायता पहुंचती नहीं दिखाई देती। परतु यदि आवश्यकता हो--तो गीघ्र नगरहार की ओर प्रत्यावर्तन करना । मै वही तुमसे मिलगा। (चर का प्रवेश) स्कदगुप्त--गाधार युद्ध का क्या समाचार है ? चर-विजय | उम रणक्षेत्र मे हण नही रह गये-परतु सम्राट बधुवर्मा नही है । स्कदगुप्त--आह बधु । तुम चले गये धन्य हो वीर-हृदय । (शौक से बैठ जाता है) ? स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य : ४८७