पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५७०

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अलका-आह-यवन । गान्धार-नरेश ने तुम्हे यह अधिकार कभी नही दिया होगा कि तुम आयं-ललनाओ के साथ धृष्टता का व्यवहार करो। यवन करना ही पडेगा, मुझे मानचित्र लेना ही होगा। अलका-कदापि नही। यवन-क्या यह वही मानचित्र नही है, जिसे इस स्त्री ने उद्भाण्ड मे बनाना चाहा था? ? अलका--परन्तु यह तुम्हे नही मिल सकता। यदि तुम सीधे यहां से न टलोगे तो शान्ति-रक्षको को बुलाऊँगी। यवन-तब तो मेरा उपकार होगा, क्योकि इस अंगूठी को देखकर वे मेरी सहायता करेंगे। अलका-(देखकर सिर पकड़ लेती है) ओह । यवन- (हँसता हुआ) अब ठीक पथ पर आ गयी होगी-बुद्धि । लाओ, मानचित्र मुझे दे दो। [अलका निस्सहाय इधर-उघर देखती है | सिंहरण का प्रवेश] सिहरण-(चौककर) है | कौन राजकुमारी | और यह यवन । अलका-मालववीर । स्त्री की मर्यादा को न समझने वाले इस यवन को तुम समझा दो कि यह चला जाय । सिंहरण-यवन, क्या तुम्हारे देश की सभ्यता तुम्हे स्त्रियो का सम्मान करना नही सिग्वाती? क्या सचमुच तुम बर्बर हो यवन-मेरी उस सभ्यता ने ही मुझे रोक लिया है नही तो मेरा यह कर्तव्य था कि मैं उस मानचित्र को किसी भी पुरुष के हाथ मे होने से उसे जैसे बनता ले ही लेता। सिहरण-तुम बडे प्रगल्भ हो यवन | क्या तुम्हे भय नही कि तुम एक दूसरे राज्य मे ऐमा आचरण करके अपनी मृत्यु बुला रहे हो अवन-उसे आमन्त्रण देने के लिए ही उतनी दूर से आया हूँ। सिहरण-राजकुमारी | यह मानचित्र मुझे देकर आप निरापद हो जायें, फिर मैं देख लूंगा। अलका-(मानचित्र देती हुई) तुम्हारे लिए ही तो यह मंगाया गया था। सिहरण-(उसे देखते हुए) ठीक है, मै रुका भी इसीलिए था। (यवन से) हाँ जी, कहो, अब तुम्हारी क्या इच्छा है ? यवन -(खड़ग निकाल कर) मानचित्र हमे दे दो या प्राण देना होगा। सिंहरण - उसके अधिकारी का निर्वाचन खड्ग करेगा। तो फिर सावधान हो जाओ, (तलवार खींचता है) ? ५५०: प्रसाद वाङ्मय