पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/१०९

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परिणाम है, वह किसी की. परतन्त्रता को सहन नही कर सकता, संसार में जो कुछ सत्य और सुन्दर है वहीं साहित्य का विषय है। साहित्य केवल सत्य और सौन्दर्य की चर्चा करके सत्य को प्रतिष्ठित, और सौन्दर्य को पूर्ण रूप से विकसित करता है, आनन्दमय हृदय के अनुशीलन में और स्वतन्त्र आलोचना में उसकी सत्ता देखी जाती है। सर्वसाधारण का अक्षय, क्रमशः उन्नति और सार्वजनिक-प्रेम साहित्य का अमृतमय महान् फल है और यह मर्वव्यापी प्रेम ही मनुष्य का धर्म और मनुष्यत्व का आदर्श, अथवा लक्षण होता है; और यही क्रमशः उन्नति और विश्वप्रेम मनुष्य को देवता बना देता है। बहुत से प्रतिभाशाली मनुष्य-वाल्मीकि, कालिदास तथा शैक्मपियर इत्यादि लोगों ने इस माहित्य को, मनोनीत कल्पना रूपी सुमन से पूजित करके, आज दिन तक स्वयं भी देववत् पूजनीय हो गये है। ____ अतएव साहित्य ही प्रतिभाशाली मनुष्यो की प्रधान आराध्य देवता है। उन्नति के पथ में अग्रसर होने के पहले यह देवता अवश्य पूजनीय है। अतएव इस TIME को, साहित्य द्वारा पूजन व रना, समस्त उदार तथा महान् व्यक्तियों को आवश्यक है। अतएव इसकी उत्कृष्ट सेवा करना शुभावह तथा मंगलप्रद है। जगदीश्वर से सदैव यही प्रार्थना है कि भापा के सेवकों की उन्नति के साथ, इसका साहित्य भी राकाशशी के समान अपना मधुर प्रकाश फैलावे । इन्दु-प्रस्तावना : १