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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/११२

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तथा टीकाकार ने भी लिखा है (गद्यपद्यमयानि श्रव्यकाव्यानीत्यर्थः) इन प्रमाणों से यह सिद्ध हो गया कि चम्पू नामांकित गद्यपद्यमय श्रव्य काव्य ही होता है तथा दृश्य जिसकी मित्र प्रणाली ही है 'चम्पू' नहीं कहा जा सकता। ___अनन्तर हिंदी में चम्पूनामांकित प्रथम काव्य प्रयाग निवासी पं० रामप्रसाद तिवारी ने बनाया है जो कि सन् १८९६ ई० में इण्डियन प्रेस में मुद्रित हो चुका है जिसकी संक्षिप्त आलोचना पं० देवीदत्त त्रिपाठी नरहरि चम्पूकर्ता ने अपने चम्मू की भूमिका में किया है तथा पं० रामप्रसादजी कृत नृसिंह चम्पू में अनेक दोष दिखाकर अपने ही नरहरि चम्पू को चम्पू शैली का प्रथम ग्रन्थ माना है किन्तु वह संस्कृत के नृसिंह चम्पू का छायानुवाद है तथा उसे न तो हम शुद्ध अनुवाद ही कह सकते हैं न त्रिपाठीजी की उक्ति ही कह सकते हैं, अस्तु जो कुछ हो। इस उर्वशी में कथा के किसी २ अंश की छाया महाकवि कालिदास के विक्रमोर्वशीय त्रोटक से ली गई है, तथा उनकी किमी कविता का अनुवाद नहीं किया गया है, अपरञ्च इसके गद्य भाग में प्रायः संस्कृत के शब्दों का विशेष प्रयोग भाषा की उत्कृष्टता तथा मनोहरता के हेतु किया गया है क्योंकि यह संस्कृत की सहायता बिना नही हो सकता, खड़ी बोली के प्रेमी महाशयगण अवश्य ही किंचित् असन्तुष्ट होंगे क्योंकि पद्य के सवैया आदि छन्दों मे वृज भाषा ही विशेष है, वस्तुतः इन छन्दों में खड़ी बोली का व्यवहार करने से उतनी मनोहरता नहीं हो सकती। प्रथम संस्करण होने से तथा, प्रूफ संशोधन के दोष मे अशुद्धियां रह गई है, विद्वज्जनों से बाल्यरचना के हेतु क्षमा प्रथम ही प्रार्थित है तथा त्रुटियों के हेतु मुझे चितावनी देगे जो कि द्वितीय संस्करण में शुद्ध कर दिया जायगा तथा अपनी कृपा दिखाकर मुझे दूसरा उपहार देने के हेतु प्रोत्साहित करेगे। किमधिकं विज्ञेषु । १. श्रव्यकाव्य तीन प्रकार का है- -गद्यपद्यात्मक, गद्यात्मक और पद्यात्मक । गद्य पद्यात्मककाव्य को चम्पू कहते हैं-जैसे रामायण चम्पू, भारत चम्पू इत्यादि । नागरी में इस प्रकार का कोई अच्छा ग्रन्थ नहीं, लल्लूलाल के प्रेमसागर को पथाकथञ्चित इस कक्षा में सन्निविष्ट कर सकते हैं। -नैषधचरित चर्चा १२:प्रसाद वाङ्मय