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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/११५

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चम्पू में गद्य और पद्य समभाग से होना चाहिये, और भाषा उच्च होनी चाहिये और चरित्र उज्ज्वल तथा मनोहारी होना चाहिये। उसके विभागों का नाम स्तबक, उच्छवास और परिच्छेद होता है जैसी कि श्रव्यकाव्यों की प्रणाली है। अब तक जितने हिन्दी चम्पू हैं उनकी एक संक्षित तालिका हम नीचे देते हैं - १. नसिंह-चम्पू-ले० पं० रामप्रसाद तिवारी २. नरहरि-चम्पू-ले० पं० देवीदत्त त्रिपाठी । ३. उर्वशी-चम्पू-ले० जयशंकर प्रसाद । ४. चित्रांगदा-चम्पू-ले०, ५. नरसिंह--चम्पू-ले० स्वामी श्रीरामकृष्णानन्द गिरि । ६. साम्बचरित-चम्पू-ले० पं० कमलाकर व्यास । इनकी आलोचना हम फिर किसी समय करेंगे। (इन्दु, कला २, किरण १, सं० १९६७) चम्पू: १५