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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/१३७

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तुम्ही हो, और श्रीहर्ष ने तुम्हे सहर्ष सम्राट् बनाया है, जैसा कि इस श्लोक से व्यक्त होता है कि व्यधत्त धाता बदनाब्जमस्याः सम्राजमम्भोजकुलेखिलेपि । सरोजराजौ सृजतोऽदसीयां नेत्राभिघेयावत एव सेवाम् ॥ तब फिर तुम्हारे गुणो का उल्लेख हम कहाँ तक कर सकते है ? तुमसे बढ़कर संसार-कानन में अन्य कौन कुसुम है ? सरोज:३०