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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/१४०

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कवि निराला की “गीतिका" पर अभिमत . निराला जी, हिन्दी-कविता की नवीन धारा के कवि है और साथ ही भारती मंदिर के गायक भी हैं। उनमें केवल पिक को पंचम पुकार ही नही, कनेरी की-सी एक ही मीठी तान नहीं, अपितु उनकी गीतिका में सब स्वरों का समारोह है । उनकी स्वर-साधना हृदय के ग्रामों का झंकृत कर सकती है कि नही, यह तो कवि के स्वरों के साथ तन्मय होने पर ही जाना जा सकता है । "गीतिका" हिन्दी के लिये सुंदर उपहार है। उसके चित्रो की रेखाये पुष्ट-वर्णो का विकास भास्वर है। उसका दार्शनिक पक्ष गंभीर और व्यंजना मूतिमती है । आलम्बन के प्रतीक, उन्ही के लिये अस्पष्ट होंगे, जिन्होंने यह नहीं समझा है कि रहस्यमयी अनुभूति, युग के अनुसार अपने लिये विभिन्न आधार चुना करती है । केवल कोमलता ही कवित्व का मापदंड नही है। निरालाजी ने नृम्ण और ओज, सौन्दर्य-भावना और कोमल-कल्पना का जो माधुर्यमय मंकलन किया है वह उनकी कविता में शक्ति-साधना का उज्ज्वल परिचायक है। "अमिय-गरल शशि सीकर-रविकर राग-विराग भरा प्याला पीते हैं जो साधक उनका प्यारा है..." यह मतवाला के मुख-पृष्ठ पर छपा हुआ हिन्दी में उनका जो मबसे पहला छंद मैंने देखा है, वह आज इन कई बरसों के बाद भी कवि के जीवन में, रचना में खुली आँखों और निर्विकार हृदय से देखने वाले को, स्पष्ट और विकसित दीख पड़ेगा। ४०: प्रमाद वाङ्मय