पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/१७

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भास ने संभवत: (कुणीक के स्थान में) अजात के दूसरे नाम दर्शक का ही उल्लेख किया है जैसा कि चण्डमहासेन के लिए प्रद्योत नाम का प्रयोग किया है। ___ यदि पद्मावती अजातशत्रु की कन्या हुई, तो इन बातों को भी विचारना होगा कि जिस समय बिम्बिसार मगध में, अपनी वृद्धावस्था में राज्य कर रहा था, उस समय पद्मावती का विवाह हो चुका था। प्रसेनजित् उसका समवयस्क था। वह बिम्बिसार का माला था; कलिंगदत्त ने प्रसेनजित् को अपनी कन्या देनी चाही थी, किन्तु स्वयं उसकी कन्या कलिंगसेना ने प्रसेन को वृद्ध देखकर उदयन से विवाह करने का निश्चय किया था। कथा सरित्सागर के मदनमञ्चका लम्बक मे उल्लेख है - "श्रावस्तीं प्राप्य पूर्व च तं प्रसेनजितं नृपम् ! मृगयानिर्गतं दूराज्जरापाण्डु ददर्श सा॥ • तमुद्यानगता सावत्सेशं सख्युदीरितम् ।" इत्यादि अर्थात्-पहले श्रावस्ती में पहुंचकर, उद्यान में ठहरकर, उसने सखी के बताये हुए वत्सराज ! प्रमेनजित ) को, शिकार के लिए जाते समय, दूर से देखा। वह वृद्धावस्था के कारण पाण्डु-वर्ण हो रहे थे। ___ इधर बौद्धों ने लिखा है कि “गौतम ने अपना नवां चातुर्मास्य कौशाम्बी में, उदयन के राज्य-काल में, व्यतीत किया और ४५ चातुर्मास्य करके उनका निर्वाण हुआ। ऐसा भी कहा जाता है-अजातशत्र के राज्याभिषेक के नवें या आठवें वर्ष में गौतम का निर्वाण हुआ। इससे प्रतीत होता है कि गौतम के ३५वें ३६वें चातुर्मास्य के समय अजातशत्रु सिंहासन पर बैठा। तब तक वह बिम्बिसार का प्रतिनिधि या युवराज-मात्र था; क्योंकि अजात ने अपने पिता को अलग करके, प्रतिनिधि-रूप से, बहुत दिनों तक राज्य-कार्य किया था, और इसी कारण गौतम ने राजगृह का जाना बन्द कर दिया था। ३५वे चातुर्मास्य में ९ चातुर्मास्यों का समय घटा देने से निश्चय होता है कि अजात के सिंहासन पर बैठने के २६ वर्ष पहले उदयन ने पद्मावती और वासवदत्ता से विवाह कर लिया था और वह एक स्वतन्त्र शक्तिशाली नरेश था। इन बातों को देखने से यही ठीक जंचता है कि पद्मावती अजातशत्रु की बड़ी बहन थी. और पद्मावती को अजातशत्रु से बड़ी मानने के लिए यह विवरण यथेष्ट है। दर्शक का उल्लेख पुराणों में मिलता है, और भास ने भी अपने नाटक में वही नाम लिखा है; किन्तु समय का व्यवधान देखने से-और बौद्धों के यहां उसका नाम न मिलने से--यही अनुमान होता है कि प्रायः जैसे एक ही राजा को बौद्ध, जैन और पौराणिक लोग भिन्न-भिन्न नाम से पुकारते है, वैसे ही दर्शक, कुणीक और अजातशत्रये नाम एक ही व्यक्ति के है, जैसे बिम्बिसार के लिए विन्ध्यसेन और श्रेणिक--ये दो नाम और भी मिलते हैं। प्रोफेसर गैगर महावश के अनुवाद में बड़ी दृढ़ता से अजातशत्रु-कथा प्रसंग : १७