पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२०९

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प्राचीन आर्यावर्त्त-प्रथमं सम्राट् इन्द्र और दाशराज्ञ युद्ध विश्वजिते धनजिते स्वजिते सत्राजिते नृजित उर्वराजिते । अश्वजिते गोजिते अजिते भरेन्द्राय सोमं यजताय हर्यतम् ।। (ऋक--२-२१-१) एवा वस्व इन्द्रः सत्य. सम्रान्ता वृत्रं वरिव. पूरवे क. । पुरष्टुत क्रत्वा नः शग्धि रायो भक्षीय तेऽवसो दैव्यस्य । (ऋक् -- ४-२१-१०) पाश्चात्य विद्वानो ने संसार की सबसे महान् और प्राचीन पुस्तक 'ऋग्वेद' और उसके परिवार त्रीय ग्रंथों का अनुशीलन करके हमारी ऐतिहासिक स्थिति को बतलाने की चेष्टा की है, और उनका यह स्तुत्य प्रयत्न बहुत दिनों से हो रहा है। किंतु इस ऐतिहासिक खोज से जहां हमारे भारतीय इतिहास की सामग्री बनने में बहुत-सी सहायता मिली है उसी के साथ अपूर्ण अनुसंधानो के कारण और किसी अंश मे सेमेटिक प्राचीन धर्म पुस्तक (Old Testament) के ऐतिहासिक विवरणों को मानदण्ड मान लेने से बहुत-सी भ्रांत कल्पनायें भी चल पडी है । बहुत दिनों तक पहले, ईसा के २००० वर्ष पूर्व का समय ही सृष्टि के प्राग ऐतिहासिक काल को भी अपनी परिधि में ले आता था। क्योंकि ईसा से २००० वर्ष पूर्व जलप्रलय का होना माना जाता था और सृष्टि के आरंभ से २००० वर्ष के अनन्तर जल-प्रलय का समय निर्धारित था-इस प्रकार ईसा से ४००० वर्ष पहले सृष्टि का आरंभ माना जाता था। बहुत संभव है कि इसका कारण वही अन्तनिहित धार्मिक प्रेरणा रही हो जो उन शोधकों के हृदय मे बद्धमूल थी। प्रायः इसी के वशवर्ती होकर बहुत से प्रकांड पण्डितों ने भी, .ऋग्वेद के समय-निर्धारण मे संकीर्णता का परिचय दिया है। हर्ष का विषय है कि प्रत्नतत्त्व और भूगर्भ शास्त्र के नये-नये अन्वेषणो और आविष्कारों १ आर्यावर्त और प्रथम सम्राटू इन्द्र 'कोशोत्सव स्मारक संग्रह' मे सवत् १९८५ में प्रकाशित हुआ और 'दाशराज्ञ युद्ध' गंगा के देगंक मे पोष संवत् १९८८ में प्रकाशित हुआ। उभय निबन्ध आर्य संस्कृति के आरम्भिक अध्यायो पर एकतान चिन्तन की फलश्रुति में प्रस्तुत है-सुतराक्रमबद्ध रूप से एकीकृत किया गया है। (सं) प्राचीन आर्यावर्त्त-प्रथम सम्राट् इन्द्र और दाशराज्ञ युद्ध : १०९