पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२१२

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कर रखने की शक्ति पर ही उनका विश्वास था, फिर भी कौन कह सकता है कि कितने स्मृति-चिह्न अभी दबे पड़े हैं। कितने ही बर्बर आक्रमणों से आर्य साहित्य का जितना विनाश हुआ है, उसका अनुमान करना भी कठिन है। इसलिए ऐतिहासिक विवरणों का अभाव होना कुछ असम्भव नही । यद्यपि 'परजीटर' (Pargeter) आदि ने पुराणों की प्रामाणिकता मे अधिक विश्वास प्रकट किया है तथापि सभ्यता के उद्गम को, जहाँ तक हो सके, पश्चिम मे स्थापित करने की प्रेरणा ने शोधकों को उनसे सहमत नहीं होने दिया । यद्यपि भौतिक अवशिष्ट चिह्नों पर ही इन शोधक विद्वानों का अधिक विश्वास है, जैसा हम ऊपर कह आये है, तथापि, वे अनुसन्धान मे पुस्तक, अभिलेख और विवरणों के सम्बन्ध में अपनी मूल मनोवृत्ति से प्रभावित हुए बिना न रह सके । ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी मे होने वाले मिस्र देशवासी धर्मयाजक मनेथो (Manetho) ने अपने देश के इतिहास में जिन राजाओ के तीस वंशों का वर्णन किया है, उन्हे प्रामाणिक मान लेने के लिए प्रोफेसर फिलण्डर्स पिढ़ी (Flinders Petre) ने अधिक आग्रह किया है। बाबुल का धर्म याजक बेरोसस (Berosus) ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी मे हुआ, जिसने ग्रीक भाषा मे अपने देश का कुछ वृत्तात लिखा था। अब उमके आधार पर उक्त देश का इतिहास बनाने और धार्मिक सामंजस्य स्थिर करने का प्रयास किया जाता है। उसी तरह ईसा-पूर्व चौथी शताब्दी के ग्रीक राजदूत मेगास्थनीज ने भारतीय इतिहास का समय तत्कालीन पुराणो के आदिम रूप से निर्धारित किया है और उस पूर्व काल मे भी भारतीयो के प्राचीन इतिहास का विवरण महीनो और वर्षों के साथ राजाओ की संख्या के उल्लेख से पूर्ण है। मेगास्थनीज ने ६४५१ वर्ष और ३ महीने चन्द्रगुप्त से पहले १५४ राजाओ का राज्य करना लिखा है, किंतु भारतीय इतिहास लिखने वाले पाश्चात्य विद्वान इस ओर ध्यान भी नही देना चाहते। मिस्र, चल्डिया, बेबिलोनिया, इलाम आदि देश अपने धार्मिक अनुष्ठान और जातियों के सहित कुछ मिट्टी और पत्थर के चिह्न छोड कर मिट गये, पर आर्यावर्त या सिंधु की गोद मे अभी आर्य जाति अपने धर्मानुष्ठानो के साथ जीवित है। तिलक ने ज्योतिष के आधार पर अपने अन्वेषणों से यह प्रमाणित किया है कि बहुत से वेदमन्त्र छः हजार वर्ष ईसा पूर्व से पीछे के नही है। मेगास्थनीज के भारतीय इतिहास के विवरण से अविरुद्ध होने के कारण भी हमारी सभ्यता उक्त काल से और पहले की मानी जा मकती है । इसलिए बाइबिल-वणित जलप्रलय वाले नूह की सन्तान-हेम, सेम या याफ्त के वंशधरों का उल्लेख करके संसार के प्राग् ऐतिहासिक काल के आर्यों का इतिहास बनाया जाना अधिक भ्रमात्मक ही सिद्ध होगा। क्योकि, ऋग्वेद की ऋचाओं मे ११२ : प्रसाद वाङ्मय