पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जल-प्रलय का वर्णन नहीं मिलता, जैसा पीछे के अपर्व के मन्त्रों में उसका उल्लेख है। मैरा विश्वास है कि सुमेरिया के जलप्लावन मे 'पीर निपिरतीम्' का जो वर्णन है, वह एक कल्पना है, जो जलप्लावन से बच जाने के बाद वहां के निवासियों ने गढी थी। जलपुत्र या जलशक्ति का नाम ऋग्वेद मे अपानपात् है। अवेस्ता मे भी अपानपात् जल के देवता माने गये हैं। द्वितीय मण्डल का पैतीसवा सूक्त उन्ही की प्रार्थना मे है। वहाँ वे जलपुत्र हैं। सुमेरियावालो ने जलप्रलय से बचने पर इन्ही आर्य देवता को त्राणकर्ता का रूप दिया था। उनके पीर निपिश्तीम् (Pir Nepishtim) भी जल के बीच मे दीप के रहने वाले देवता थे। जैसा आगे चलकर दिखलाया गया है-ये सुमेरियावासी भी आदिम आर्य सन्तान ही थे, उससे इनका ऋग्वैदिक देवता से परिचित होना असम्भव नही। किंतु अपनी रक्षा का सम्बन्ध, जो उन्होने उक्त देवता से जोड़ दिया है, उससे प्रतीत होता है कि वह घटना ऋग्वेद से पीछे की है अन्यथा ऋग्वेद मे भी जलप्रलय का प्रसंग आता। अभी तक यही विश्वास था कि ऋग्वेद से पीछे के शतपथ ब्राह्मण मे जिस जलप्रलय का वर्णन मिलता है वह मेमेटिक जाति के बेबिलोनियावालो से उधार लिया हुआ है, कितु मैकडानल के विचार से यह एक अनावश्यक कल्पना है।' अब मैकडानल के विचार की पुष्टि भूगर्भ शास्त्र के विद्वानो द्वारा भी होने लगी है। हिमालय की खोज करके लौटे हुए Dr. E Tinkler का अभिमत १८ अक्तूबर सन् २८ के 'पायनियर' मे प्रकाशित हुआ है। उनका विचार है कि बालू मे दबे हुए प्राचीन नगर के चिह्न इस बात को प्रमाणित करते है कि हिमालय और उसके प्रात मे भी जलप्रलय वा ओध का होना निश्चित-सा है। "सिंधु की सभ्यता' प्राचीन सुमेरियन सभ्यता से सस्कृति की विशेषता के कारण जब विभिन्न मान ली गयी है, तब वह मेना (Mena) के मिस्र विजय' (बीस्टेड Breasted के मतानुसार) ३४०० बी० सी० से पूर्व की ही प्रमाणित होगी। मिस्र की प्राथमिक सभ्यता से पहले ही सिधु की घाटी में नागरिक सभ्यता का विकास हो चुका था, जिसके लिए और भी हजारो वर्ष पहले का समय चाहिये। वह सिधु की सभ्यता ऋग्वेद के आर्यों की सप्तसिंधु वाली सभ्यता से भिन्न नही प्रमाणित होगी। जब हम देखते है कि ग्रीको के हरक्युलिस की जन्मभूमि मेगास्थनीज़ के ? It is generally regarded as borrowed from a Semitic source, but this seems to be an unnecessary hypothesis. (P 139, Vedic Mythology) - इस निबंध की अंतिम पाद टिप्पणी द्रष्टव्य (सं०) प्राचीन आर्यावर्त । ११३