(सभापर्व ५२ अध्याय). इधर 'वृहत्संहिता' में तंगण वर्तमान कुल्लू के पास ही निर्दिष्ट किया गया है 'अभिसारदरदतंगणकुलतसरिध्रवनराष्ट्राः' (१४-२९) ग्रीकों ने अभिसार देश (Abissorion) सिंधु और झेलम के बीच में माना है और काकेशस (हिन्दूकुश) पर्वत के पाददेश में बसने वाली जातियों का उल्लेख करते हुए मेगास्थनीज ने शैलोदा (Soleadae) जाति का भी वर्णन किया है । यह शैलोदा नदी-तट की जाति है, जिसका वर्णन सभापर्व (५२ अध्याय) में है। वेंदिदाद फरगर्द १ में पारसियों की पवित्र भूमि का वर्णन है। अहुरमज्द कहते है-तीसरी पवित्र भूमि जो मैंने बनायी वह दृढ़ और पवित्र मौरु' है। चौथी और भूमि उन्नत पताकावाली बखधी (वाल्हीक) है। पांचवी अच्छी भूमि निशय है, जो मौरु और बखघी (वाल्हीक) के बीच मे है ।' ऊपर के विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि मेरु और बाल्हीक (आधुनिक बलख के बीच 'निशय' प्रदेश था। ऐतरेय ब्राह्मण में हिमालय के उत्तर के दो विराज् प्रदेशों का साथ ही वर्णन किया गया है, वे है-उत्तर-कुरु और उत्तर-मद्र (८-३-१४) उत्तर शब्द का प्रयोग जो इन देशो के नाम के साथ आता है उसका तात्पर्य मै वही समझता हूँ कि ये हिमालय के उत्तर मे है, और इसका कारण है-- मद्र, कुरु और कोशल का हिमालय के दक्षिण मे भी अस्तित्त्व ! स्यालकोट (शाकल) को मद्र की राजधानी और अयोध्या को कोशल की राजधानी कहते है। ऐसे ही प्रदेशों का संगठन सिंधु के उस पार भी था। फारस के एक बड़े अंश को प्राचीन काल मे 'मीडिया' (Media) कहते थे यह संभवत. उत्तर-मद्र था, और अफगानिस्तान तथा फारस का कुछ अंश आरकोशिवा (Archosea) कहलाता था। यह उत्तर-कोशल था। इसी उत्तर-कोशल में सरयू (हरिरूद- Harirud) के तट पर वह अयोध्या रही होगी जिसका संकेत अथर्व के १००२-३६ मंत्र मे-"अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या"-से किया गया है। अवेस्ता मे वहा है कि छठी पवित्र p. The third of the good lands and Countries which I, Ahura Mazda, created was the strong holy Mouru (Darmesteter, Vendidad p 5.) 2. The fourth of the good lands and countries which I, Ahura Mazda, created, was the beautiful Bakhdhi with high lifted banners, (The Avestha Vendidad, p. 5.) 3. The fifth of the good lands and countries which, I Ahura Mazda, created was Nisaya that lies between Mouru and Bakhdhi (Vendidad. p. 5.) प्राचीन आर्यावर्त : ११५
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