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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२४९

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परन्तु देखना चाहिये कि उस जाति का असली नाम कितनी चालाकी से छिपाया जाता है । 'ओल्ड टेस्टामेण्ट' में व्यवहृत विकृत Hittites का प्रचार किया गया है । २८०० ईसा पूर्व यानी 'सार्गन' के पहले भी जो उनका नाम क्षत्रिय (Khatti) था, उसका कही प्रयोग नही। मेर। अनुमान है कि ये आर्य किसी धर्म-सम्प्रदाय के प्रति उतना आग्रह नहीं रखते थे, जितना अपनी शूरता और विजयों के प्रति ! उन्होंने अपना नाम केवल क्षत्रिय ही रखा था। हीरेनशा (Hearenshaw) अपने संसार के इतिहास (पृष्ठ १९) में लिखते हैं -"सबसे पहले एगिया माइनर की लोहे की खान को खोदने वाले हिटाइट (खत्ती) लोग ही थे। इस लोहे की सभ्यता के आदि आविष्कारक आर्य- क्षत्रिय ही थे।" 'Indian Mythical legend' की भूमिका में लिखा है-"माधारणतः यह मानी हुई बात है कि आर्य लोगो ने ही घोड़े को पहले पालतू बनाया जिसके कारण आगे चलकर बहुत से साम्राज्य बने और निगड़े।" मिश्र के इतिहास मे भी आयों के द्वागही घोड़े के प्रचार का उल्लेख मिलता (Egyption Myth and Legend--page 264)| Hyksos i Ppoo far पूर्व मे मिश्र देश में राज्य किया और इन्ही आक्रमणकारी इक्ष्वाकुओं (Hyksos) ने घोड़े से मिस्र देश को परिचित कराया था। इसके पहले के पिरामिड बनाने वाले राजाओं मे Sonkhkor= शंखकार जैसे आर्यध्वनि वाले नाम मिलते हैं। सुमेरिया की जाति के हो ये प्रागैतिहासिक काल के निवासी माने जाते है। नीलनद की सभ्यता ने पिरामिड बनाने वाले को अधिक से अधिक ४००० से ३००० वी० सी० के बीच में उत्पन्न किया है। परन्तु मिधु की मभ्यता ने (मार्शल के अनुसार) ४००० से ३००० बी० मी० का प्रमाण दे दिया है । इसलिए यह मानने मे पोई बाधा नही है कि 'ओसेरिस' पूजक मिस्र निवासियों की प्रागैतिहासिक काल की सभ्यता भी इन्हीं अ..र उपासकों के उस 'विगट द्वंद्व' का एक अंश मात्र रही। H. G Wells ने जिस 'Sargon of Accad' को बिजेताओं में सर्वप्रथम . f. Asia Minor was the region where iron mincs were first worked and that the Hittites were the people who first conveyed this gift of the Gods to men-(Indian Mythical Legend). 8. It is generally believed that the Aryans were the tamers of the borse which revolutionised warfare in ancient days and caused the great empires to be overthrown and new empires to be formed - (p. XXX, Indian mythical legend). प्राचीन आर्यावर्त : १४९