है कि ये असुरोपासक अपने प्राचीन इतिहास को धीरे-धीरे भूल चले-कुछ तो धार्मिक मतभेद के कारण और कुछ समय के इतने लम्बे अन्तर से। इनके धर्मों के मूल में वही असुरोपासना थी, यद्यपि धीरे-धीरे उसमें अनार्य या सेमेटिक जाति के संसर्ग से अत्यन्त प्राचीन समय में कुछ नयी बातें भी घुस पड़ी थीं; जैसे, स्त्रियों का छाती पीटकर रोना, 'Ailnu Ailnu' कहते हुए चिल्लाना। यह प्रथा असीरिया में प्रचलित थी। सम्भवतः शतपथ (काण्ड :, प्रपाठक १), में-'तेऽसुरा आत्तवचसः हेऽलवो-हेऽलवो इतिव्वदन्तः पराबभूवुः""अमुर्या हैषा वाग" (सायण ने लिखा है- 'असुर्या असुरेष्वाहिता') इसी का संकेत है। ऐसी ही एक प्रथा बालक-बलि की भी उन लोगों में थी। यह बालक-बलि पूर्णरूप से सेमेटिक पूजा थी। पिछले काल के भारतीय उपाख्यानों मे क्या, ऐतरेय मे ही एक ऐसा प्रसंग आया है-रोहिताश्व की बलि का। यह जानकर आश्चर्य होगा कि उस बलि के द्वारा तर्पणीय देवता भी असुर वरुण ही थे जिनके लिए शुनःगेफ की वलि होती। मालूम पड़ता है, संतानार्थी आज भी जिस प्रकार आसुरी मनौतियां करते हैं उसी प्रकार हरिश्चन्द्र भी किसी असुरयाजक के चक्र में पड़ गये थे। किंतु विश्वामित्र ने यह अनार्य और आसुर-कर्म आर्यावर्त में न होन दिया और शुनःशेफ की मुक्ति करा दी। बालक प्रह्लाद के वध की किंवदन्ती भी हिरण्यकश्यप असुर से ही सम्बन्ध रखती है। ऐसे बहुत से अनार्य आचार भी उन असुरों के क्रिया-कलाप में थे, किंतु प्रधान असुर आकाशी वरुण की उपासना तब भी सबसे प्रधान थी। प्राचीन काल में मुमेरियनों का स्वर्ग भी जल में था। सुमेर लोग दजलाफरात की सन्धि में बसने वाले थे। G. Leonard woolsey का कथन है- The original home of the Sumerians is unknown. They came from a hill country somewhere in central Asia and so widely spread that kinsfolk of those whom we find later in Mesopotamia were already settled in the north west provinces of India, How they came in Mesopotamia we do not know. Whether thcy dashed down through Elamite hills or came by sea skirting the castern shore of Persian gulf as is perhaps more likely." (Universal history of the world, 5-12). Considering the human sacrifices and especially of children were a standing institution among other semetic cannanitic races. There can be little doubt that originally in prchistorically remote times this decree was understood literally and acted upon- (p. 124, The Story of Assyria). प्राचीन आर्यावर्त : १५१
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