पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२५३

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- उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि ईजिप्ट मे यह एक आक्रमणकारी जाति के द्वारा ले आये गये और अत्यन्त प्राचीन प्राग-ऐतिहासिक काल मे वे शिल्पियो के देवता कहकर पूजित हुए। यह Ptah शब्द त्वष्टा का स्मारक है। सबसे पहले मेम्फिम मे इन्ही का मदिर बना और ईजिप्ट के यही प्रधान देवता माने गये । OSIris Assor-ah भी मिश्र की असुर उपासना के अग थे। उनमें चन्द्रमा की वैसी ही शक्ति मानी जाती थी जैसी वरुण मे। इस प्रकार आर्यावर्त से विताडित त्वष्टा और वरुण की माहस्री माया के परशिया, मेसोपोटामिया, बैविलोनिया, मुमेरिया, असीरिया और ईजिप्ट मे फैलने का प्रमाण ऋग्वेद और अवेस्ता मे मिलना है। विलोनिया का Baal भी ऋग्वेद में वर्णित इन्द्र-शत्रु बल की प्रतिकृति है। बल के जीतने और बलभिद आदि उपाधि धारण करने के प्राय: उल्लेख है। ऋग्वेद मे कही-कही ऐसा भी ध्वनित होता है कि यह वृत्र का भाई था। तम्यूज की कथा और उनके मारे जाने का प्रमग भी असीरिया में अधिक प्रवलित था। यह तम्यूज भी दानवो का राजा या। ऋग्वेद मे वृत्र का एक संकेत 'तमस्' भी है। बेबिलोनिया मे भी दृष्टात्माओ का उच्च देवताओ से युद्ध करने के प्रसंग का उल्लेख मिलता है, जिसमे तम्यूज के मारे जाने का वर्णन है। यह तम्यूज़ वैबिलोनिया के मृत और पराजित देवता थे, जिनकी पूजा उस सप्रदाय के अनुयायी करते थे। उनके यहाँ उमके लिए शोक भी मनाया जाता था। एक प्रकार से यह 'नृम्ण' इन्द्र की विजय की स्वीकृति थी जिसे आमुरी सभ्यता मानती थी। माराश यह है कि महावीर इन्द्र की विजयो ने प्राचीन आर्यावर्त के 'त्रिसप्तक- नद-प्रदेश' से असुर उपापको को हटा दिया। ईरान में वह असुर उपासना, 'अहुर- मज्द' धर्म, फूला-फला । यह ऐतिहासिक प्रमग ७५०० ईसा पूर्व से भी पहले का है। पिछले काल मे भी मैत्रायण, इक्ष्वाकु और क्षत्रिय जैमी आर्य धर्मानुयायी जातियाँ कभी-कभी उन असुर देशो मे भी अपनी विजय वैजयन्ती उड़ा आनी थी। 9. It is possible hat Ptah was imported into Egypt by an invading tube in prehistoric times He was an artisan God according to tradition. Egypt's first temple was erected to Ptah by King Mena -(Egyptian myth and legend Introduction, XII) २ Egyptian myth की भूमिका । ३. देवी यदि तपिषी त्वावृधोतय इन्द्रं मिषक्त्युषस न सूर्यः । योधृष्णुनाशवसा बाधते तम इयति रेणु वृहदहरिष्वणिः --ऋग् १-५६-४ (सं०) प्राचीन आर्यावर्त : १५३