पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२५५

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. 'मनुष्य (Beijing man) छः लाख वर्ष पहले का कहा जा रहा है । भूमध्यरेखा के समीप उष्ण-मरु और रूक्ष वायुमण्डल में कृष्णवर्णा जाति और उत्तरीय ध्रुव के समीप शीतप्रधान आर्द्र वातावरण मे पीतवर्णा जाति के उद्भव और प्रसार स्पष्ट है । कुछ दिनों पूर्व Indian Physic Journal 'प्रमाण' मे प्रोफेसर यू० आर० राव ने पृथ्वी पर जीवोत्पत्ति का कारण चुम्बकीय-क्षेत्र को बताया है । निश्चय ही भिन्न शक्ति-तरंग वाले अनेक चुम्बकीय-क्षेत्र इम पृथ्वी पर होंगे और जीवोत्पत्ति मे कारणभून वस्तुन. वे क्षेत्र नही प्रत्युत उन्हे केन्द्र बनाकर जित होने वाले उनकी शक्ति तरंगे है । भिन्न भिन्न तरंगों में भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवोत्पादन की क्षमता होगी : और, अन्य जीवों मे विलक्षण चेतना-सम्पन्न मनुष्य की उत्पत्ति के मूल में कुछ विशिष्ट शक्ति-तरग वाले चुम्बकीय-क्षेत्रो का होना आवश्यक है। तब, ऐमा केवल चीन अथवा अफ्रीका मे ही न होगा। पृथ्वी के धरातलीय विपर्यासो ने कब, कहां और कैसे-कैसे क्षेत्र-परिवर्तन किये और उनका जैव-विकास को कैसा योग मिला यह तो भौतिक विज्ञान का विषय है ऋतु अभी तक मामान्य सूचना में आये तथ्यो का फलयोग कुछ ऐसा ही संकेत देता है। चीन और अहीका अर्थात पीन और कृरण जाति के भू-खण्डों पर मिले नर-कंसालो ने एक और गंभीर प्रश्न यह उपस्थित कर दिया है कि उस मानव जाति का केन्द्र और उसके प्रागैतिहाभिक अवशेष नहाँ है जिनका वर्ण श्वेत से ताम्र पर्यन्त भौगोलिक प्रभावो से परिवनित अनेक आभासों से रंगीन, हमे आज प्राप्त है : और जो गंगा से नील की घाटी और स्कैंडिनेविया पर्यन्त आज भी पृथ्वी की मर्वाधिक प्रभविष्ण महाजाति अथवा आर्य-जाति है। प्रागैतिहासिक अवशेषो की ऐमी अलभ्यता के कारण आर्यो की प्राचीनता और उनकी मौलिक भूमि के सम्बन्ध मे अनेक भ्रात धारणाएं बनती चली आ रही हैं : उसके समाधान का समुचित उपचार इस निबन्ध का मूल्यवान विषय है। प्रायः तीन वर्ष पूर्व तनजानिया (अफ्रीका) के लेतोली क्षेत्र में डा० मेरी लीके ने कुछ अति प्राचीन मानुष चिह्न पाये है जिनका उल्लेख पश्चिमी- मिशिगन विश्वविद्यालय के प्रोफेमर द्वारिकेश ने १२ जून १९८२ के टाइम्स आफ इण्डिया में किया है । रेडियो-कार्बन-परीक्षण से वे चिह्न छत्तीस लाख वर्ष पुराने सिद्ध हुए है । इम निबन्ध मे कथिन मूल द्रविड़भूमि के इन मानुष-चिह्नों का आज उम Shivalik Man के Rama Picthus से जो मम्बन्ध लगाया जा रहा है उससे भी आर्य-द्रविड संघर्ष की भूमि अफ्रीका ही ठहरती है-आर्यावर्त्त किंवा उसका सप्तसिंधु प्रदेश नही। हिमालय के परिसर अथवा मेरु-प्रदेश से प्राचीन आर्यावत्त : १५५