पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२५७

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दो शाखाओं चंद्रवंशीय श्वेत और सूर्यवंशीय रक्त वर्णो की एक मिश्र प्रजाति द्वारा अधिकृत होने उस देश का मिश्र नामकरण सार्थक है। दोनों जातियों में जो परस्पर विग्रह या उच्चावच भाव था उसको वहाँ के प्रथम राजा मेना ने समाप्त किया। अब, देखा जाय कि मिश्र का वह प्रथम शासक मेना क्या आर्य- वंशीय है ? आर्य परंपरा मे प्रायः मातृ नाम में भी संतान सम्बोधित हुआ करते थे, जैसे जबाला का पुत्र जाबालि । व्यक्ति या मानव-समूह के नाम पर स्थानों की मंज्ञा होती है। ऐमा सोचा जा सकता है कि मेना (मेनका) पदवाच्य किसी मातृमत्ताक जाति विशेष से सम्बन्धित होने से-हिमालय का एक विशिष्ट अंशभाग होने से -मेना को हिमालय की पत्नी और उसके वास-पर्वत को हिमालय-पुत्र मैनाक म्हा जाना रहा हो। आज भी हिमालय के कुछ भागों में मातृ-सत्तापरक समाज है । फिर, यह भी संभव है कि मिश्र का यह आदि-शासक मेना उमी मैनाक प्रदेशीय जानि नी मंतान रहा हो। प्रनय में 'गया सभी कुछ' मानकर संतोष करनेवालो की- आर्गो की भावमयी श्रनियों, अनुश्रुतियों एवं रूपकीय गाथाषा मे उम ममृद्ध संस्कृति के अपार्थिव-अवशेष संस्कार-रूप में जीवित है, जो इतिहास की रेखा जो वो पुष्ट कर मकने है। अगले लेख 'आदि पुरुष' (कानायगी का आमुख) की यह पक्ति माज वे मनुष्य के समीप तो उसकी वर्तमान संस्कृति का क्रमपूर्ण इतिहास भी होता है, परन्तु उसके इतिहास की मीमा जहाँ से प्रारभ होती है ठोक उसी के पहले मामूहिक चेतना की दृढ़ और गहरे रंग की रेखाओ से, बीती हुई और भी बातो का उल्लेख स्मृति-तट पर अंकित रहता है'-इम प्रमग गे ध्यातव्य और मननीय है । प्रतीकों और रूपकों में समाज और उसके इनिहाम के तथ्यो को रशित रखने की यहाँ परम्परा रही है। अनुश्रुति है कि इन्द्र ने सभी पर्वतो के पंख काट दिये, केवल मैना छूट गया। यह भी संभव है frद ने किसी अभियान विशेष की अनुमति और उसर लिए अपना प्रश्रय केवल मैनाको को दिया हो और अन्य लोगो को उममे वारित किया हो। मैना को छोड़कर शेष पर्वनों के पंख काटने का रूपक-रहम्य इस प्रकार अनुमेय हो सकता है। और, वही की मेनका-कुल की सतति ने गिश्र जाने पर भी अपने मान्मनाक चिह्न को संजोए रवार मेना के रूप में उभय आर्य-वर्गों को एकीकृत दासन किया हो तो विस्मय क्या ? जैसे ' हिरोस' में इक्ष्वाकु का बोध होता है वैसे 'मेना' के मूल में भी हिमालय की मेनका-सतनि हो सकता है। इक्ष्वाकुओ की भी मूल भूमि हिमांत प्रदेश मे थी। इस प्रदेश- हिमानीपाद (शिवालिक)- गे अपनी देव- कल्पनाओ और अपने आध्यात्मिक विचार के साथ लोग गये। नामो का प्राचीन आर्यावर्त · १५७