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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२७३

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क्रमाद वयस व्यक्तित्व पक्ष पारिवारिक पक्ष बाबा द्वारा संस्कृत के आर्षग्रन्थों की शिक्षा और विभिन्न ग्रन्थ- विशेषज्ञों द्वारा संस्कृत-वाङ्मय के शास्त्रीय और प्रस्थान परक अध्ययन अग्रज के जीवन पर्यन्त चालू रहे। १९५४-५५ तक आठ वर्ष की वय में अष्टाध्यायी पूरी एवम् समग्र अमरकोष कण्ठस्थ, १९५७ पिता का तिरोधान अग्रज के निर्देशानुसार पिता औज़दैहिक कृत्य किए १९५८ से १९६० पारिवारिक-विग्रह, चूड़ा- कर्म अनेक तीर्थो मे । नैमिषारण्य, मान्धाता- धारा-क्षेत्र, महाकाल, मध्य-भारत मे भीषण अकाल और भुखमरी के दृश्यों का आयु पर्यन्त प्रभाव । अवलोक्य-स्कंद- गुप्त में पर्णदत्त का कथन। 'अन्न पर स्वत्त्व है भूखों का'। जबलपुर से अमर- कण्टक तक चैत की चांदनी मे नर्मदा-पथ की जल-यात्रा । बन्दूकची के उद्धारार्थ नर्मदा में कूद पडना । झारखण्ड : वैद्य- नाथ : मैं चड़ाकर्म के बाद झारखण्डी नाम से पुकारे जाने लगे। पौष कृष्ण ७ माता श्रीमती १९६२ १६ 'कलाधर' उपनाम से भारतेन्दु पत्र व्यक्तित्व एवं कृतित्व सारिणी : १७३