पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२७४

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वैक्रमाब्द वयस व्यक्तित्व पक्ष पारिवारिक पक्ष मुन्नी देवी का तिरोधान। उनके और्ध्वदेहिक कृत्य किए। में 'सावन-पंचक' का प्रकाशन (प्रथम प्रकाशित कविता)। अबतक गद्दी पर लिखी गई प्राय: चार सो रचनाए अग्रज के भ्रूभग पर भठ्ठ मे जला दिया। १७ प्रेमपथिक (ब्रजभाषा), प्रेमराज्य, उर्वशी चम्पू के लेखन। १८ कलाधर-काल की समाप्ति । प्रसाद- १९ नाम के प्रचलन का रहस्य-द्रष्टव्य कानन कुसुम की 'अवतरणिका' । १९६३ १९६४ १९६५ अग्रज साहु शम्भुरत्नका निधन (भाद्र कृष्ण ८)। प्रथम विवाह बलोचहा (गोरखपुर) के श्री मथुरा- प्रमादजी की विन्ध्यवासिनी से सवत् १९६४ के फाल्गुन मे कन्या हुआ। २० भारतेन्दु-पत्र को लेकर उसको पुनरुज्जीवन देने की विफल चेष्टा के अनन्तर श्रावण सदी २ से 'इन्दु' का प्रकाशन । उर्वशी चम्पू का प्र० प्र०, प्रेमराज्य का प्र० प्र०, चन्द्र- गुप्त मौर्य निबन्ध का, जिमका व्यवहार नाटक की भूमिका के रूप मे हुआ का प्र० प्र०। २१ प्रथम नाटक सज्जन इन्दु मे (कला २, किरण ८-११) प्रका- शित । "विसर्जन' कविता फाल्गुन १९६७ ज्येष्ठ १९६८ के मयुक्ताक मे, १९१० ई. के मार्च मे पहले इसका रचनाकाल है । 'जाहु विस्मृति अस्तशैल यहा मे व्रजभाषा विसर्जित हुई। उक्त १९०३ ईसवी के पारिवारिक विभाजन मे तीन पक्ष रहे-द्वितीय पक्ष म अग्रज साहु शम्भुरत्न और अवयस्क श्री जय- शकर प्रसाद । अन्य पक्ष को अचल सम्पत्ति और हुण्डी महाजनी का व्यवमाय मिला। द्वितीय पक्ष को कि सुंघनी माहु फर्म मिली अतः दोनो शिवालय की सेवा पूजा तथा पारिवारिक ऋण १९६२००= का देना भी मिला। विभाजन के चार वर्ष बाद ही अग्रज १९६७ १७४: प्रसाद वाङ्मय