पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२७७

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To विक्रमाब्द वयस सर्जनात्मक पक्ष पारिवारिक पक्ष से मई पर्यन्त चला। एक सप्ताह देकर आनुवंशिक-जातीय में लिखित नाटक कामना का चौधराने का विसर्जन । प्र० प्र०। श्रीपंचमी को कामा: श्री अम्बिका प्रमाद से यनी का आरम्भ । उभय का तीत्र मतभेद । पूर्वापर मम्बन्ध ध्यातव्य । 'स्वर्ण तू पृथ्वी का सुन्दर पाप है' कहते अंगूठी उतार कर अपनी भाभी को देना (अवलोक्य-कामना) १९८५ ३८ करुणालय, महाराणा का महत्व, स्कन्दगुप्त के प्र० प्र० । नित्राधार का द्वितीय परिवद्धित संस्करण। शिदीप, कंकाल, पॉधी, एक घुट के प्र० प्र०। १०८८ ४२ चन्द्रगप्त नाटक गंगामागर, कलकत्ता, पुरी- निनलो मुदणाधीन । यात्रा (१३१ दिसम्बर से जनवरी १९३२) १९९० ४४ ध्रुवस्वामिनी, लहर प्र० प्र० । १९९१ ४५ तितली प्र०प्र०, अग्निमित्र का लखनऊ यात्रा दिसम्बर लेखन, फाल्गुन में महानिवरात्रि १ ३६ कान्यकुब्ज कालेज को कामायनी वा परिममापन। मे अन्तिम व्य-पाठ । २८ जनवरी १९३७ से शम्याग्रस्त, १३ फरवरी को यक्ष्मा का निदान । १९९२ ४६ इन्द्रजाल, प्र० प्र० अग्निमित्र रोककर-इरावती का लेखन । १९९३ ४७ कामायनी का प्र०प्र० (मार्च में) २२ जुलाई १९३५ को ग्रन्थ मुद्रणाधीन हुआ था। १९९४ ४७ वर्ष नौ मास एक दिन कात्तिक शुक्ला एकादशी संवत् १९९४ को ब्राह्म मुहूर्त में तिरोधान। १२ व्यक्तित्व एवं कृतित्व सारिणी : १७७