पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२८१

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काल मे सोलहवी शती के मध्य पूर्वजों को वहां से हटना पड़ा और पुनः गंगा के तट से काशी के पश्चिम कुछ ही आगे अवस्थित मोजा बैरवन मे हमारे वंश का दूसरा पड़ाव पड़ा। दूसरा इसलिए कि अठारहवी शती लगते-लगते प्राकृतिक प्रकोप वशात् वहाँ से भी विस्थापित होकर काशी मे विश्वनाथ की शरण में आना पडा, किन्तु कन्नौज से काशी पर्यन्त जाह्नवी की लहरे सदैव साथ रही। सम्भव है सैदपुर से इस पश्चिमाभिमुखी अभियान का अभिप्राय पुन कन्नौज वापस जाने का रहा हो और प्रतिकृल कारणों ने काशी के प्रत्यन्त से आगे न बढ़ने दिया हो। बरवन में प्रायः दो सौ वर्षों तक उसी चीनी व्यवसाय मे पीढियां बीती जो कन्नौज से चालू रहा । उसके कुछ दूर पश्चिम मोहनसराय की बाजार मे विक्रय केन्द्र रहा जहाँ थोक माल की भी विक्री होती थी। कही-कही यह उल्लेख आया है कि 'प्रसाद जी के पूर्वज मोहनसराय से बनारस आकर बसे ।' वास्तविकता यह है कि निवास और कारखाना राजमार्ग से पूव बैरवन में रहा। निकटवर्ती महराजगंज मे भी एक वडा कारखाना रहा। उस मोहनसराय मे माल का गोदाम और थोक- फुटकर बित्री का स्थान रहा जहां बनार प अथवा काशी के उपकण्ठ पर व्यवसायी सार्थवाहो का पड़ाव होता था। भारवाही पशुओ के चारा पानी और बपारियो के भोजन-विश्राम का यह स्थल-मोहनसराय एक वणिक-तीर्थ रहा। फोजो और शाही सवारियों के आवागमन से भी इस बाजार की श्री-वृद्धि होती रही--किन्तु कभी-कभी लटपाट भी हो जाती थी। पूज्य पिताश्री ने औरंगजेब के बनारम आने के प्रसंग म बताया था कि पुराने कागजो में औरंगजेब का एक शाही फरमान भी रहा है। औरंगजेब के किसी फरमान के अपने यहां होने का केवल यही कारण हो सकता है कि जब वह प्रच्छन्न रूप में शहर बनारस के कोतवाल के दमन के लिए मफर मे रह! तब उसने मोहनसराय में पडाव किया होगा और वहां से कुछ आदमियो का अस्थायी बल संघटित कर अपने बनारस पहुंचने के पहले यहाँ तैनात कर दिया होगा जिससे कोतवाल को उसकी 'गफलत' में सहसा गिरफ्तार करके दण्ड दिया जा सके । घटना यों है कि शहर बनारस के कोतवाल ने एक रूपवती ब्राह्मण-कन्या को पकड़वा मंगाया और उसे निकाह की तैयारी में था। उस समय औरगजेब का पड़ाव इलाहाबाद-बनारस के मध्य रहा, जहां ब्राह्मण पिता ने जाकर फरियाद की। औरंगजेब ने उसे आश्वस्त करते कहा-'तुम बेफिक्र रहो, ऐन मौके पर पहुंचूगा, लेकिन इसकी खबर किसी को मुतलक न हो।' वह साड़िनी पर सवार होकर लवाजमात छोड़ एकाकी चल पड़ा। इसी दौड़ में वह मोहनसराय मे रुका होगा और अपने अभियान के लिए वही से कुछ आदमियो का प्रबन्ध करने मे हमारे पूर्वज उसके सहायक हुए होगे-इसी प्रसंग मे उसने वहा कोई फरमान जारी किया श्री कुलदेवतायै नमः : १८१