पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/३१४

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प्रसाद को 'आनन्दवादी' कहने की भी एक परम्परा बनती जा रही है। पर कोई महान कवि विशुद्ध आनन्दवादी दर्शन नही स्वीकार करता, क्योकि अधिक और अधिक मामंजस्य की पुकार ही उमके सृजन की प्रेरणा है, और वह निरन्तर असंतोष का दूसरा नाम है ! 'आनन्द अखड घना था' (कामायनी) -विश्व जीवन का चरम लक्ष्य हो सकता है, परन्तु उसे इग चरम सिद्धि तक पहुंचाने के लिए कवि को तो निरन्तर साधक ही बना रहना पड़ता है। मितार यदि ममरमती पा ले तो फिर झंकार के जन्म का प्रश्न ही नहीं उठता, क्योकि वह तो हर चोट के उत्तर मे उठती है और सम-विषम स्वरों को एक विशेष क्रम मे रखकर दूसरी के निकट सगीत बना देती है। यदि आघात या आघात का अभाव दोनो एक मोन या एक स्वर बन गए है, तब फिर संगीत का सृजन और लय सम्भव नही । प्रसाद का जीवन, बौद्ध विचारधारा की ओर उनका झकाव, चरम त्याग- बलिदानवाले करुण-कोमल पात्रो की सृष्टि, उनके माहित्य म बार-बार अनुगुजित करुणा का स्वर आदि प्रमाणित करेगे, कि उनके जीवन के तार इतने सधे और खिचे हुए थे कि हल्का-मा कम्पन भी उनमे अपनी प्रतिध्वनि पा लेता था। हमारे युग की ममष्टि के हृदय और बुद्धि म जो भाव और विचार नीरद उमड-घुमड रहे थे, उन्हे कवि ने जागरण के स्वर देकर मुखरित किया। पर जब हिमाद्रि तुग शृग से'- मा भारती ने अपने इम स्वर-माधक को पुकारा, तब वह अपनी वीणा रखकर मौन हो चुका था । X X x किमी कवि के द्वारा किसी कवि क मम्मरण का मामान्य से भिन्न होना अवार्य है, क्योकि उममे स्मरणीय के भाव-विन्द से चलकर व्यक्तित्व-मूति तक पहुँचने का उपक्रम रहता है। वन्दनीया बुआजी (महादेवी जी) के इम सस्मरण मे कुछ बिन्दु ऐसे है जिन्हे रेखा-विस्तार वाछित है- किन्तु उस विस्तार का अधिकारी कोन ? मौभाग्यवश २४ जनवरी १९६४ को प्रसाद मन्दिर म आयोजित 'हीरक जयन्ती' के अवसर पर उनका जो व्याख्यान हुआ वह इस प्रसग में महायक है। -अतः उसे यहाँ सम्मिलित किया जा रहा है । (रत्नशंकर प्रसाद) "आज महाकवि प्रमाद की पचहत्तरवी जन्मतिथि है। यदि भाग्य अधिक अनुकूल होता तो आज हमारे बीच म वे उपस्थित होते। अनेक स्मृतियां बारबार मुझे घेर रही है। जब मुझसे उनकी भेट हुई तब वे कामायनी का प्रथम सर्ग लिख धुके थे । मैं विद्यार्थिनी थी। वेद मग विषय था। उनसे इस संबंध मे बहुत चर्चा हुई। आप जानते ही होगे ऋग्वेद में श्रद्धा कामायनी, बहुन मे मंत्रो की ऋषि है। और, जलप्लावन की कथा अनेक देशो के माहित्य में भी मिलती है । १०:प्रसाद वाङ्मय