पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/३२४

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f और स्थिति की कोई संशा नहीं जानता। हेरिक की भांति प्रार्थना भर करता है, कोई तिष्यरक्षिता की छुरी से कुणाल की आंख न निकाले :- Here a pretty baby lies Sung a sleep with lullabies Pray be silent and not stir The easy earth that covers her. -Robert Herrick हार्दिक विमलता बिना यह सलीका संभव नही। दिल मे खुब जानेवाली खूबियों की चीर-फाड कर कोई पाएगा भी क्या ? दूसरी बार उन्हें फुटपाथ पर पं० विनोदशङ्कर व्यास के साथ मंच की अपेक्षा अधिक निकटता से निरखा। हंस के डैनों की तरह सफेद शान्तिपुरी धोती और रेशमी कुर्ते-चादर मे उनकी दीप्ति देखते ही बनती थी। हाथ से जडाल मूठ वाली छड़ी लिए मोटी गर्दन और कसे कन्धो को हल्के झुकाए, आंखो मे मुसकिराते हुए। उस दिन लाला भगवानदीन विद्यालय में कोई कविसम्मेलन था, मुझे वहाँ पहुंचने की जल्दी थी, जुडे हाथ सिर पर रखकर लहर मारता निकल गया। ऐसे ही उन्हे यहाँ-वहाँ दूर-दूर से देखता था, पास पहुंचने का विश्वास मन के खोखल मे दुबका हुआ पंखों की प्रतीक्षा करता रहा । कही पढा था नफस न अंजुमने आरजू से बाहर खैच, अगर शराब नही, इन्तज़ारे सागर खैच ! विश्वप्रकृति की लीला अद्भुत है। कौन कह सकता है कि मिट्टी की परतो के नीचे दबे हुए एक छोटे से छोटे बीज की भी वह किस तत्परता से रक्षा करती है, कमे उसे अकुरित होने, बिरवे के रूप मे नरम धरती मे जडे मजबूत करने का अवसर देती है । फूल वसन्त की प्रतीक्षा करते थकता कहाँ है ? आखिर १०-९-३५ को वह अवसर भी आया। स्वयं निराला जी मुझे प्रसाद जी से मिलाने ले आए। अस्सी पर वाजपेयी जी के यहां ठहरे हुए थे, मेरे साथ पहले पं० विनोदशङ्कर व्यास के घर पहुंचे, फिर मुझे मन्दिर-मस्जिद दिखलाते हुए, मत्त गयन्द गति से सराय गोवर्धन-प्रसाद जी के पास ले आए। व्यास जी तब तक वहां पहुंच चुके थे। डेढ टके के लिबास मे मैं बड़े-बड़ों के बीच घुसा पडता था, थान का टर्रा होना मुझे भाता न था, विवशता थी। प्रसाद जी को हर बार राजसी ठाट में ही टक-टक देखा था, ओंठ तक न हिला रहा था कि इस अनदेखी झांकी ने मेरी हीनता हर ली। आज उन्हे देखकर शङ्कर के सम्बन्ध मे कालिदास की उक्ति स्मृति में कौंध गई: २०:प्रमाद वाङ्मय