जिन्हें पूर्ववत् अपना अंश मिल जाता था। होली, दीवाली, दशहरा, सब त्योहारों में उनके परिवार की पुरानी प्रथा का पालन विधिवत् होता था। उनका घराना काशी मे बहुत प्रतिष्ठित माना जाता था और उससे लाभान्वित होने वाले लोग उसे दरबार की सज्ञा देते थे। प्रसादजी को देखने ही अनेक काशीनिवासी 'हर हर महादेव' मात्र कहकर उन्हे करबद्ध प्रणाम करते थे। यह प्रतिष्ठा बनारस में केवल काशी नरेश को ही प्राप्त है। किन्तु बडे राग-रंग वाले धनी घराने मे पैदा होकर भी अपने निष्कलक चरित्र के प्रभाव से ही थे इस प्रतिष्ठा के आजीवन अधिकारी बने रहे। प्रसादजी सस्कृत साहित्य के स्वाध्याय के अतिरिक्त अग्रेजी साहित्य के इतिहास ग्रन्थो का भी अनुशीलन करते रहते थे। नागरी प्रचारिणी पत्रिका (काशी) मे उनके जो शोध प्रधान ऐतिहासिक निबन्ध प्रकाशित हुए ये उन्हे पढ कर स्वनामधन्य इतिहासज्ञ विद्वान डॉक्टर काशीप्रसाद जायसवाल ने श्री राय कृष्णदासजी के घर पर उनका हार्दिक अभिनन्दन और नमन किया था। वे सचमुच ऐसे ही वन्दनीय भी थे। बाते बहुत है। पर कहाँ तक लिखा जाय । वानगी के तौर पर जो कुछ यहा लिखा गया है उमसे प्रसादजी के साहित्यिक पहलू का विशेष सम्बन्ध नही है, केवल उनके व्यावहारिक जीवन की झलक-झांकी ही मिल सकती है। ६२ · प्रसाद वाङ्मय
पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/३६६
दिखावट